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________________ कालिदास का काल है। बाली संस्करण में २२१ श्लोक हैं और शंकर एवं चन्द्रशेखर इल पर टीका लिखने वाले हैं। देवनागरी संस्करण में १६४ पद्य है और इस पर राषव भट्ट की टीका मिलती है। यह बताना यद्यपि कठिन है कि इन दोनों में में कौन-सा संस्करण अधिक अच्छा है. तथापि प्रमाण वृहतर संस्करण के पक्ष में अधिक झकता है। ईसा की ७वीं शताब्दी में हर्ष ने बगाली सस्करण का अनुकरण किया था; क्योंकि रमाबली का बह दृश्य जिसमें नाविका सागरिका जाना है, कापस श्राती है, छु मकर राजा की बातें सुनती है और उसके सामने प्रकट होती है, वृक्षन्तर सस्करण के एक ऐसे ही दृश्य के लाभग पूरे प्रकरण पर लिखा गया है। दूसरी तरफ देवनागरी संस्करण अपूर्ण है। लम्भवतया बन अनि के लिये किया हुश्रा वृहत्तर संस्करण का संक्षिप्त रूप है। इशो 'द पर हो रहा है। कह कर बाजा शकुन्तला को रोकता है, इतने में 'श.म हो गई है। कद्वता दुई गौरमी आ जाती है। वृहत्तर संस्करण कादिप सा ऐसा दायात दोष नहीं पाया जाता है । इसई लिना बंगाली संस्करण को प्राकृत मानिस अधिक शुद्ध है। यह बात भी बात कुछ ठीक है कि राजशेखर को रंगाखी संस्करण का पता था, विसी अन्य का नहीं । देवनागरी संस्करण के प्राचीन होने में बैदर {Weber) की दी हुई युक्तियां संशयापहारिणी नहीं है। (२३) कालिदास का काल दुर्भाग्य की बात है कि भारत के सर्वश्रेष्ठ कवि के काम के बारे में कोई निर्णायक प्रभाग नहीं मिलता । कानको अवरसीमा Lower Limit का निश्चय तीन बातों से होता है---(१)शक सम्बत् ५५६ (६३१ ई.)का ऐडोल का शिला-लेख जिसमें कालिदास की कीर्ति का उल्लेख है, (२)बाण ६२०६०)के हर्ष चरित्र की भूमिका जिसमें उसने कालिदास की मधुरोहियों की प्रशंसा की है, और (३) सुबन्धु का एक परोक्ष संकेत । १ बोलेनसेन (Bollensen) का भी यही मत है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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