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________________ ११० संस्कृत-साहित्य का इतिहास मिलना स्वाभाविक ही है। मालविकाग्निमित्र का चक एक ही संस्क. रण मिलता ना रहा है. किन्तु साक्षिदर्पण में एक लस्या प्रकरण इस में से उद्धत किया गया है जो बसमान संस्करण के प्रकरण से पूरा पूरा नहीं मिलता। इसले अनुमान होता है कि इसका भी कोई दूसरा संस्करह रहा होगा । वत्त मान मालविकाग्निमित्र का प्रकरण साहित्यदर्पण में शुद्ध त प्रकरण का समुपत्र हिल रूप है। चिक्रमोर्वशीय दो संस्करणों में चला आ रहा है, (१) स्तरीय (बंगाली और देवनागरी लिपि में सुरक्षित) शव (२) दक्षियोंय (दक्षिा भारत की भाषा की लिपियों में सुरक्षित)। पहले पर रंगनाथ : १६५६ई.) ने और दूसरे पर कटपम (३४०० १०) ने टोका रखी है ! उत्तरीय संस्करण का चौथा अझ बहुत उप क्षित है। इसमें अपनश के अनेक ऐये पद्य हैं जिनक गीत-स्वर भी साथ ही निर्देश कर दिए गए हैं। नायक, नाट्य-शास्त्र के विरुद्ध, अपन श में गाता है, परन्तु इस नियमोल्लंघन का समाधान इस प्राधार पर किया जाता है कि नायक उन्मत्त है। यह विश्वास नहीं होता कि कालिदास के ये पछ श्रपत्र'श में लिखे होंगे। इस अंज' की अनुकृति पर लिखे अनेक सन्दर्भो में से किसी में भी अपभ्रंश का कोई पद्य नहीं पाया जाता ! इसके अतिरिक्त कालिदास के काल में ऐसी अपनश दोषियों के होने में भी सन्देश किया जाता है। उत्तरीय संस्करण में नाटक को 'नाटक' का और दक्षिसीय में नाटक का नाम दिया गया है। अभिज्ञान शकुन्तला के चार संस्करण उपलब्ध हैं. बंगाजी, देवनागरी, काश्मीरी और दक्षिण भारतीय, पहले दो विशेष महत्व के १ देखिये- भवभूति के मालतीमाधव का नवम अंक, राजशेखर के बालरामायण का पंचम अंक, जयदेव के प्रसन्नराघव का षष्ट अंक और महानाटक का चतुर्थ अक । २ काश्मीरी तो बंगाली और देवनागरी का सम्मिश्रण है, तथा दक्षिणभारतीय देवनागरी से बहुत ज्यादा मिलता जलता है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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