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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास इलमा दिगन्तव्यापी यश सनुपार्जित करने के लिए कम से WHORE वर्ष पहले विद्यमान रहा होगा। पर लीमा upper limit की अभिव्यक्ति मालविकाग्निमित्र (लगभग ई० पू० १२५) है जो शुगवश का प्रवर्तक था। इन दोनों सीमाओं के बीच, भिन्न भिन्न विद्वान् .. कालिदास का भिन्न भिन्न काला निश्चित करते हैं। (1) ई. पू. प्रथम शताब्दी का अनुश्रु सवाद । जनश ति के छानुसार कालिदास विक्रमादित्य शकारि की सभा के. नवरत्नों में से एक था । यह विक्रमादित्य भी वही विक्रमादित्य कहे जाते हैं, जिन्होंने शकविजय के उपलक्ष्य में १७ ई० पू० में अपना सम्वत् प्रवर्तित किया था। कालिदास के विक्रमादित्य-पाबित होने की सूचना विक्रमोर्वशीय नाटक के नाम से भी होती है इस नाम में उसने द्वन्द्वममास के अन्त में लगने वाले 'ईय' प्रत्यय के नियम का उत्खनन केवल अपने प्राश्रयदाता के नाम को अमर बनाने के लिए किया है। इल बाद का समर्थन वक्ष्यमाण युक्तियों से होता है: (क) मालविकाग्निमिन की कथा से प्रतीत होता है कि कवि को शुङ्ग वंश के इतिहास का, जो पुराणों तक में नहीं मिलता है, खूब परिच शा। नाटक की बात' अर्थात् पुष्यमित्र का सेनापति होना, पुष्यमित्र के पौत्र वसुमित्र का यवनों को सिन्धु के तट पर परास्त करना, पुष्यमित्र का अश्वमेध यज्ञ करना ऐतिहासिक घटनाएं हैं। कालिदास को यह सारा पता स्वयं शुङ्गों से बगा होगा। इसके अतिरिक्त, नाट्यशास्त्र के अनुसार कथावस्तु तथा नायक सुप्रसिद्ध होने चाहिएं । यदि कालिदास गुप्त-काल में जीवित होता तो उसके समय अग्निमित्र का यश मन्द हो चुका होने के कारण उसे नायक बनाने का बात सन्देहपूर्ण हो जाती है।। (ख) मोटा के एक मुद्रा-चिन्न में एक राजा रथ में बैठकर हरिश का पाखेट करता हुभा दिखाया गया है । यह रश्य शकुन्तला नाटक प्रथम अंक के दृश्य से बहुत मिलता है। इस दृश्य के समान सम्पूर्ण
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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