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________________ ( १७ ) जब हम हिन्दू मतको ओर इस वातके जांचनेके लिये दृष्टि: पात करते हैं कि चाया कर्म सिद्धान्त हिन्दु ऋपियोंकी खोज का नतीजा है तो हमको उसका एक अनिश्चित और अपूर्ण भाव हिन्दू धर्म के प्रारंभिक शास्त्रमें मिलता है। परिणाम यहां भी वही निकलता है अर्थात् यह कर्मसिद्धान्त हिन्दुओंने किसी अन्य धर्मसे लिया है, क्योकि यदि वह हिन्दू ऋषियोकी मेहनत का फल होता तो वह अपने रचयिताओं के हाथोंमें भी अपने उसी वैज्ञानिक ढंग पर होता जैसा कि वह निःसन्देह जैन मतमे पाया जाता है। कर्म, बन्धन, मुक्ति और निर्वाण के स्वरूप क्या है, यह एक ऐसा विषय है जिसकी स्त्रित हिन्दुओके विचार बहुत हो विरुद्ध और अवैज्ञानिक पाये जाते है। वास्तव में अथव संबर निजरा ऐसे में से हैं जिनसे ब्राह्मणोका मत करीब करीव विल्कुल ही अनमिन है बावजूद उपनिषदों के लेखकों की वुद्धमत्ता के जिन्होंने अपने पूर्वजोंक धर्मको दार्शनिक विचारोंकी पुष्ट नीव पर आधारित करने की कोशिश की । पस ! जो परिणाम निकालनेके अब हम अधिकारी हैं वह यह है कि हिन्दू मतने aise forest किसी अन्य निकास से प्राप्त किया है जिस को श्रम बाज लोग उसीकी कृति मानते है । दूसरा प्रश्न यह है कि हिंदुओोने कर्मक सिद्धांतको कहां ने प्राप्त किया? वौद्धोंसे तो नहीं, क्योकि बौद्धमत पीछेको कायम हुआ । तब सिवाय जैनमत के और अन्य किसी मजदवसे नहीं, जो आवागमनके माननेवाले धर्मो में और सबसे प्राचीन धर्म है और २
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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