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________________ तीसरा अध्याय [ १७ गीत १० खेलना होगा तुझको खेल। दुनिया यह नाटकशाला है; तू नाटक करनेवाला है। तू न भाग सकता, जीवन है, पात्रों का ही मेल । खेलना होगा तुझको खेल ॥२८॥ बन जाना रागी वैरागी कहलाना भोगी या त्यागी। सभी खेल हैं चतुर खेलते मूर्ख बने उद्वेल । खेलना होगा तुझको खेल ॥२९॥ क्या है जीना क्या है मरना; यह है खेल सभी को करना । सब हँस हँस कर चोट झेलते तू भी हँसकर झेल । खेलना होगा तुझको खेल ॥३०॥ गीत ११ मत भूल मर्म की बात, खेल संसार है । तू समझ खल का मर्म जो सुखागार है ॥३१॥ सभी खिलाड़ी जुड़े हुए हैं, है न वैर का नाम । पर अपनी अपनी पाली का सब ही करते काम ॥ _____ मची भरमार है। मत भूल मर्म की बात, खेल संसार है ॥३२॥ भाई भाई बटे हुए हैं, है न वैर का लेश । प्रतिद्वन्दिता दिखती है, पर है न किसीको क्लेश ॥ हृदय में प्यार है। मत भूल मर्म की बात, खेल संसार है ॥३३॥
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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