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________________ १८ ] कृष्ण- गीता लेन देन का काम नहीं है, है न नफा नुकसान । पर सब का हिसाब है, सबको, उसी बातका ध्यान ॥ जीत है हार है । मत भूल मर्म की बात, खेल संसार है ॥ ३४ ॥ बालक सा निर्दोष हृदय कर. खेल जगत के खेल । हो न वासना वैर-भाव की, रहे प्रेम का मेल || प्रेम शृङ्गार है । मत भूल मर्म की बात खेल संसार है ||३५|| फल में है अधिकार न तेरा, फल की आशा छोड़ । करता रह कर्तव्य, स्वार्थ के सब दुर्बन्धन ताड़ ॥ यहीं अधिकार है । संसार है || ३६ || मर्म की बात, खेल अर्जुन -- गीत १२ दुनिया का सारा काम रहे, फिर भी भीतर का ध्यान रहे । माधव बोलो, यह कैसे हो दोनों का बोझ समान रहे ||३७|| मन तो है मुझको एक मिला, दो जगह इसे बाहूँ कैसे ? है कैसे इस मन में, रोकरके भी मुसकान रहे ||३८|| सम्भव श्रीकृष्ण- दोहा विज्ञान । मन बटता है किस तरह, सखि यही इसीलिये करले तनिक, पनिहारी का ध्यान ||३९|| मत भूल
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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