SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूसरा अध्याय [११ सजनता की जीत हो दुर्जनता की हार । पाप निकंदन कर सदा, कर हलका भू-भार ॥१८॥ मोह ममत्व न पास रख कर तू उचित विचार । वीतराग बन खोल दे शुद्ध न्याय का द्वार ॥१९॥ गीत ४ जग में रह न सके अन्याय । नातेका सम्बन्ध तोड़ कर । न्याय धर्म से प्रेम जोड़ कर । प्राणों का भी मोह छोड़ कर । वन तू न्याय-सहाय ॥ जगमें........॥२०॥ नातेकी हे झूठी माया । अपना हो या हो कि पराया । जिसपर गिरी पापकी छाया । कर उसका सदुपाय ॥ जगमें........॥२१॥ जीवन रोटी पर न बिकावे । पाप न जग पर राज्य जमावे । अबलाओं की लाज न जावे । धर्मराज आजाय ॥ जगमें........॥२२॥ गीत ५ भाई कर मत यह नादानी, भल रहा क्यों मोहित होकर अपनी कठिन कहानी । भाई. ॥ याद नहीं आता है तुझको । यह सब कहना पड़ता मुझ को॥
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy