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________________ १२ ] कृष्ण-गीता दोन बोला था " दूंगा नहीं सुई की नोक । दूंगा सार पांडव दल को मृत्यु -- कुंड में झोंक । निर्बल का है कौन सहाय । जिसकी लाठी उसका न्याय || अब कैम न भूल गया हैं उसकी यह शैतानी । भाई. ॥२३॥ भाई कर मत यह नादानी, जीवन मानी के समान हैं, मत उतार तू पानी | भाई | क्यों अपना गौरव खाता है । ममता का शिकार होता है || तुझ को नहीं विचार रहा है कहाँ न्याय अन्याय | तु मानव है भूल गया पर मानवता भी हाय ॥ देवा चमड़े का सम्बन्ध | नाते की माया में अन्ध ॥ कुल कुटुम्ब के झगड़े में पड़, भूला न्याय निशानी । माई. ||२४|| भाई कर मत यह नादानी, 1 न्याय तुला लेकर बैठा फिर कैसी आनाकानी | भाई. | कोई नातेदार कहाता । न्यायी का क्या आता जाता ॥ अपना काम | शुद्ध हृदय से करता रहता है वह दुनिया की पर्वाह न करता नाम हो कि बदनाम || कोई भी हो नातेदार 1 कर तू न्याय न वन बेकार | पक्षपात से न्याय -- तुला की कर मल खींचातानी | भाई. ॥ २५ ॥
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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