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________________ ६६ ० धर्म के बसलकारण पच्चीस कषाएँ राग-द्वेष में गभित हैं। उनमें चार प्रकार का क्रोध, चार प्रकार का मान, अरति, शोक, भय एवं जुगुप्सा ये बारह कपाएँ-द्वेष हैं; और चार प्रकार की माया, चार प्रकार का लोभ, तीन प्रकार के वेद, रति एवं हास्य ये तेरह कषाएँ- राग हैं। इसप्रकार जब चारों प्रकार का लोभ राग में गभित है, तब राग को धर्म मानने वालों को सोचना चाहिए कि वे लोभ को धर्म मान रहे हैं, पर लोभ तो पाप ही नहीं, पाप का बाप है। राग चाहे मन्द हो, चाहे तीव्र ; चाहे शुभ हो, चाहे अशुभ ; वह होगा तो राग ही। और जब वह राग है तो वह या तो माया होगा या लोभ या वेद या रति या हास्य । इनके अतिरिक्त तो राग का और कोई प्रकार है ही नहीं शास्त्रों में हो तो बतायें ? ये तेरह कषाएँ ही राग हैं । अतः राग को धर्म मानने का अर्थ है कषाय को धर्म मानना, जबकि धर्म तो अकषायभाव का नाम है। चारित्र ही माक्षात धर्म है। और वह मोह तथा क्षोभ (रागद्वष) से रहित अकपायभावरूप प्रात्मपरिगणाम ही है। दशधर्म भी चारित्र के ही रूप हैं । अतः वे भी प्रकपायरूप ही हैं। शौचधर्म - उत्तमक्षमा, मार्दव, आर्जव से भी बड़ा धर्म है; क्योंकि शौचधर्म की विरोधी लोभकषाय का अन्त क्रोध, मान, माया आदि समस्त कषायों के अन्त में होता है । अतः जिसका लोभ पूरणत: समाप्त हो गया, उसके क्रोधादि समस्त कषाएँ निश्चितरूप से समाप्त हो गयीं। पच्चीसों कषायों में सबसे अन्त तक रहने वाली लोभकषाय ही है । क्रोधादि पूरे चले जाएँ तब भी लोभ रह सकता है, पर लोभ के पूर्णत: चले जाने पर क्रोधादि की उपस्थिति भी सम्भव नही है। यही कारण है कि सबसे खतरनाक कषाय लोभ है और सबसे बड़ा धर्म शौच है । कहा भी है : 'शौच सदा निरदोप, धर्म बड़ो संसार में ।' उक्त कथन से एक बात यह भी प्रतिफलित होती है कि शौचधर्म मात्र लोभकषाय के अभाव का ही नाम नहीं, वरन् लोभान्त-कषायों के प्रभाव का नाम है। क्योंकि यदि पवित्रता का नाम ही शौचधर्म है तो क्या सिर्फ लोभकपाय ही आत्मा को अपवित्र करती है, अन्य कषाएँ नहीं ? यदि सभी कषाएँ प्रास्मा को अपवित्र करती हैं, तो फिर समस्त कषायों के प्रभाव का नाम ही शौचधर्म होना चाहिए ।
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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