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________________ १४ 0 धर्म के पशलक्षण आत्म-स्वरूप की प्रतीतिपूर्वक चारित्र (धर्म) की दश प्रकार से आराधना करना ही दशलक्षण धर्म है। आत्मा में दश प्रकार के सद्भावों (गुणों) के विकास से संबधित होने से ही इसे दशलक्षण महापर्व कहा जाता है। अनादिकाल से ही प्रत्येक प्रात्मा, आत्मा में ही उत्पन्न, आत्मा के ही विकार-क्रोध, मान, माया, लोभ, असत्य, असंयम आदि के कारण ही दुखी और प्रशान्त रहता आया है। प्रशान्ति और दुख मेटने का एक मात्र उपाय आत्माराधना है । प्रात्म-स्वभाव को जानकर, मानकर, उसी में जम जाने से, उसी में समा जाने से, अतीन्द्रिय प्रानन्द और सच्ची शान्ति की प्राप्ति होती है। ऐसे ही प्रात्मागधक व्यक्ति के हृदय में उत्तमक्षमादि गुरगों का महज विकास होता है। अतः यह स्पष्ट है कि उक्त पर्व का संबंध आत्माराधना से है - प्रकारान्तर से उत्तमक्षमादि दश गुणों को प्राराधना से है । क्षमादि दश गुणों को दश धर्म भी कहते हैं। ये दश धर्म हैं - (१) उत्तमक्षमा (२) उत्तममार्दव (३) उत्तमप्रार्जव (४) उत्तम सत्य (५) उत्तमशौच (६) उत्तममंयम (७) उत्तमनप (८) उत्तम त्याग (६) उत्तमप्राकिंचन्य, और (१०) उत्तमब्रह्मचर्य ।। ये दश धर्म नही, धर्म के दश लक्षण हैं; जिन्हें संक्षेप में दणधर्म शब्दों से भी अभिहित कर दिया जाता है। जिस आत्मा में प्रात्मरुचि, आत्म-ज्ञान और आत्म-लीनतारूप धर्म पर्याय प्रकट होती है, उसमें धर्म के ये दश लक्षण सहज प्रकट हो जाते है। ये आत्माराधन के फलस्वरूप प्रकट होने वाले धर्म हैं, लक्षण हैं, चिह्न हैं। यद्यपि उक्त दश धर्म चारित्रगुण को निर्मल पर्याय हैं, नथापि प्रत्येक के साथ लगा हा उत्तम शब्द सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान की अनिवार्य सत्ता को सूचित करता है। तात्पर्य यह है कि ये चारित्र गुग्ण की निर्मल दशाएँ सम्यग्दृष्टि ज्ञानी प्रात्मा को ही प्रकट होती हैं, अज्ञानी मिथ्यादृष्टि को नहीं। वस्तुतः चारित्र ही साक्षात् धर्म है । सम्यन्दर्शन और सम्यग्ज्ञान तो चारित्ररूप वृक्ष की जड़ें (मूल) हैं। जैसे वृक्ष जड़ के बिना खड़ा नहीं रह सकता, पनप नही सकता, अथवा जड़ के बिना जैसे वृक्ष की एक प्रकार से सत्ता ही संभव नहीं है; जसीप्रकार सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानरूपी जड़ के बिना सम्यक्चारित्ररूपी वृक्ष खड़ा ही नहीं रह
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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