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________________ बराललण महापर्व 0 १५ सकता, पनप नहीं सकता, अथवा इन दोनों के बिना सम्यक्चारित्र की सत्ता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यद्यपि लोक में बहुत से लोग आत्म-श्रद्धान और प्रात्म-ज्ञान के बिना भी बंधन के भय एवं स्वर्ग-मोक्ष तथा मान-प्रतिष्ठा आदि के लोभ से क्रोधादि कम करते या नहीं करते-से देखे जाते हैं, तथापि वे उत्तमक्षमादि दशधर्मों के धारक नहीं माने जा सकते हैं। इस संबंध में महापंडित टोडरमलजी के विचार दृष्टव्य हैं : "तथा बंधादिक के भय से अथवा स्वर्ग-मोक्ष की इच्छा से क्रोधादि नहीं करते, परन्तु वहाँ क्रोधादि करने का अभिप्राय तो मिटा नही है । जैसे - कोई राजादिक के भय से अथवा महतपने के लोभ से परस्त्री का सेवन नहीं करता, तो उसे त्यागी नही कहते। वैसे ही यह क्रोधादिक का त्यागी नहीं है।। तो कैसे त्यागी होता है ? पदार्थ अनिष्ट-इष्ट भासित होने से क्रोधादिक होते हैं; जब तत्त्वज्ञान के अभ्यास से कोई इष्ट-अनिष्ट भासित न हो, तब स्वयमेव ही क्रोधादि उत्पन्न नहीं होते; तब सच्चा धर्म होता है।" __इसप्रकार सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानपूर्वक क्रोधादि का नहीं होना ही उत्तमक्षमादि धर्म है। यद्यपि उक्त दशधर्मों का वर्णन शास्त्रों में जहाँ-तहाँ मुनिधर्म की अपेक्षा किया गया है, तथापि ये धर्म मात्र मुनियों को धारण करने के लिए नहीं हैं, गृहस्थों को भी अपनी-अपनी भूमिकानुसार इन को अवश्य धारण करना चाहिए। धारगा क्या करना चाहिए, वस्तुतः बात तो ऐसी है कि ज्ञानी गहस्थ के भी अपनी-अपनी भूमिकानुमार ये होते ही हैं, इनका पालन सहज पाया जाता है । तत्त्वार्थसूत्र में गुप्ति, समिति, अनुप्रेक्षा (बारह भावना) और परीषहजय के साथ ही उत्तमक्षमादि दशधर्मों की चर्चा की गई है। ये मत्र मूनिधर्म से संबंधित विषय हैं। यही कारण है कि जहाँ-जहाँ इनका वर्णन मिलता है, उसका उत्कृष्टरूप का ही वर्णन मिलता है। इससे आतंकित होकर मामान्य श्रावकों द्वारा इनकी उपेक्षा संगत नहीं है। 'मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ २२८ २ स गुप्तिममितिधर्मानुप्रेक्षापरिषहजयचारित्रः (प्र. ६ सूत्र २)
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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