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________________ १४६ धर्म के दशलक्षरण यद्यपि यहाँ आकिंचन्यधर्म का वर्णन मुनिभूमिका की अपेक्षा चल रहा है, अतः परिग्रह के पूर्णत्याग की बात आती है; तथापि गृहस्थों को यह सोचकर कि हम तो परिग्रह के पूर्णतः त्यागी हो नहीं सकते - आकिंचन्यधर्म धारण करने से उदासीन नहीं होना चाहिए । उन्हें भी अपनी भूमिकानुसार अन्तरंग - बहिरंग परिग्रह का त्याग अवश्य करना चाहिये । जिनधर्म के अपरिग्रह सिद्धान्त अर्थात् प्राकिचन्यधर्म पर यह आक्षेप लगाया जाता है कि अपरिग्रह धर्म को मानने वाले जैनियों के पास सर्वाधिक परिग्रह है; पर गहराई से विचार करने पर इसमें कोई दम नजर नहीं आता । यह कहकर मैं यह नहीं कहना चाहता कि आज के जंनी अपरिग्रही हैं। पर बात यह है कि पुण्योदय से प्राप्त होने वाले अनुकूल संयोगों को लक्ष्य में रखकर ही यह प्राक्षेप लगाया जाता है, कषायचक्ररूप अंतरंग परिग्रह को लक्ष्य में रखकर नहीं, क्योंकि कषायचक्ररूप अंतरंग परिग्रहों में तो जनेतर भी जैनियों से पीछे नहीं हैं । बाह्य विभूति भी जैनियों के पास जितनी दुनियाँ समझती है, उतनी नहीं है । दिखावा अधिक होने से दुनियाँ को ऐसा लगता है । यदि है भी तो मदाचाररूप जीवन के कारण है, सप्तव्यसनादि का प्रभाव होने से सहज सम्पन्नता दिखाई देती है । जिस दिन जैनसमाज मे सदाचार उठ जायेगा, उस दिन उसकी भी वही दशा होगी जो व्यसनी समाज की होती है । एक बात यह भी विचारणीय है कि धर्म की दृष्टि से गृहस्थावस्था में सच्चे क्षायिक सम्यग्दृष्टि जैनी भी चक्रवर्ती हो सकते है, हुए भी हैं । भरत चक्रवर्ती श्रादि के जैनत्व में शंका नही की जा सकती है । चक्रवर्ती मे अधिक परिग्रह तो प्राज के जैनियों के पास हो नहीं गया है । यह कहकर मैं जैनियों को बाह्य परिग्रह जोड़ना चाहिए, इस बात की पुष्टि नहीं करना चाहता; बल्कि यह कहना चाहता हूँ कि जैनधर्म के अनुसार वे अपरिग्रह के सिद्धान्त का कहाँ तक उल्लंघन कर रहे हैं, यह बात भी विचारणीय है । जिनधर्म में अपरिग्रह सिद्धान्त को प्रायोगिकरूप देने के लिए कुछ स्तर निश्चित हैं । किस स्तर का जैन कितना परिग्रह का त्याग करता है - इसका विस्तृत वर्णन मुनि और श्रावक के आचार के
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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