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________________ भवभावना प्रकरण महर्षि तप्पडिवुज्झणसमओ त्ति जाणि भगवया वि से कहिओ। उत्तमदुहहेऊ दुहरूवो दुक्खफलो एस संसारो ॥१०॥ गुणमोत्तूणं जिणधम्म एयम्मि न अन्नमत्थि दुहसरणं । भावनायां सइ सामग्गीए इमो पडिपुन्नो जेहिं न हु विहिओ ॥११॥ धनुविसयामिसलवगिद्धेहिं तेहिं मूढेहिं हारिओ अप्पा । काउं तं पुण धीरा वयंति अयरामरं ठाणं ॥१२॥ कथा इय वीरजिणिंदसुभासियाई संवेयसारजणयाई । सोऊण धणुकुमारो संविग्गो भणइ उद्धेउं ॥१३॥ जिण ! सद्दहामि निग्गंथपवयणं तह य तुह सहत्थेण । दिक्खं इच्छामि जिणोऽवि भणइमा कुणसु पडि बंधं ॥१४॥ तो बहुयपयाराहिं जणणि मोयाविऊण जुत्तीहिं । जियसत्तरायसयमेवविहियनिक्खमणवरमहिमो ।१५। सयमेव पंचमुट्ठियलोयं काऊण गिण्हए दिक्खं । जावज्जीवं छठें उज्झियधम्माए भिक्खाए ॥१६॥ पारणयमंबिलेणं ओमोयरियाए इय जिणिंदस्स । पयमूलम्मि पवजइअभिग्गहं पढमदियहेऽवि ॥१७॥ एकारस अंगाई अचिरेण अहिज्जिऊण घोरतवं । कुणमाणो वीरासणपमुहट्ठाणेहिं पेयवणे ॥१८॥ चिट्ठतो निसिदिवसं धीरो विहरइ महीइ निस्संगो । बाहिं किसरुक्खतण अंतो विप्फुरियतवतेओ।।१९॥ १. ॥ ४२८ ॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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