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________________ काऊणं अकलंक सामन्नं देवलोयमणुपत्ता । तत्तो य चुया सव्वे इह चेव य भरहवासम्मि ॥१५॥ नयरंमि वसंतउरे दिलिमनरिंदस्स यहुयभज्जाणं । जाया पंचसयाइं पुत्ताणं पवररूवधरा ॥१६॥ तो जोवणमणुपत्ता कणगज्झयराइणा गयउरम्मि | धूयासयंवरामंडवम्मि आमंतिया सब्वे ॥१७॥ Pal तत्थ गएहिं इमेहिं दिट्ठो यहुपिद्विभारअकंतो | गलए निबद्धकूओ आरसमाणो महाविरसं ॥१८॥ पामागहिओ करहो जुनसरीरो सुदुक्खिओ तत्तो। पुणरुत्तं करुणाए निरिक्खमाणाण सव्वेसिं ॥१९॥ जायं जाइसरणं सओहिनाणं तओ वियाणंति । सो एसो अम्ह गुरू महाणुभावो अभब्वो त्ति ॥२०॥ | पेच्छह विचित्तभावं कम्माणं जेण नाणसंपत्तिं । लधु पि तारिसं वीयरायवयणं पि न हु इमिणा ।।२१। 5 सद्दहियं संसारं दुक्खनिहाणं सया वि परिभमिही । इय करुणाए तं मोइऊण करहं इमे सब्वे ॥२२॥ अन्जसमुद्दसयासे दिक्खं गिण्हंति परमसंविग्गा । सिज्झिस्संति कमेण य निवियसमग्गकम्मंसा ।। ।। इत्यंगारमईकाचार्याख्यानकं समाप्तम् ।। ofer ॥ १४७॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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