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________________ उष्ट्रभव प्राप्तौ अंगारमर्दकाचार्य कथानकम् ECEREET भव- नामेण विजयसेणो सूरी गच्छेण परिवुडो तत्थ । संपत्तो अणुकमसो विहरंतो मासकप्पेण ॥२॥ भावना अह तस्स सुसीसेहिं दिट्ठो सुमिणम्मि सूयरो एको । पंचहिं गय दिट्रो समिणम्मि सयरो एको । पंचहिं गयकलहसएहिं परिवुडो तो पभायंमि ॥३ प्रकरण कहिओ सुमिणो गुरुणो तेहि वि भणियं सुसीसपरिवारो । कोई कुगुरू एही अज इहं थेववेलाए ॥४॥ छ तो सोऽवि अविरओ कप्परुक्खसमलंकिओ समंतेण | एरंडतरु व्व तहा सणिच्छरो इव महादुट्ठो ॥५॥ * सोमग्गहपरियरिओ सह पंचसएहिं महरिसीणं च । नामेण रुद्ददेवो आयरिओ आगओ तत्थ ॥६॥ , वत्थव्वेहिं कया से अन्भुट्ठाणाइयाइ पडिवत्ती । संझाए आगंतुगआयरियपरिक्खणत्थं च ॥७॥ इंगाला विक्किन्ना काइयभूमीइ तो नियत्तंति । कसरकं सोऊणं दा मिच्छुकडं तह य॥८॥ : काऊण अभिन्नाणं तंमि पएसम्मि जीवसंकाए । आगंतुगमुणिणो तो समुट्ठिओ रुद्ददेवगुरू ॥९॥ . महइ ते इंगाले सोउ कसरकए सउचहासं । जंपइ इमेऽवि जीवा अरहंतेणं अहो भणिया ॥१०॥ * वत्थब्वयसाहहिं पच्छन्नठिएहिं तं समग्गं पि । दद्दूण साहियं नियगुरूण तो तेऽवि सुयनिहिणो ॥११॥ आगंतुगमुणिणो देसणाए बोहेन्ति तह य साहंति । जह आगिईए एयाए चेट्टिएणं च तह इमिणा ॥१२॥ * नूणमभवो एसो लक्खिज्जा परिहरेह ता एयं । मा तुन्भेऽवि अणत्थे पाडिस्सइ कत्थइ एसो ॥१३॥ अह तेहिं वि साहहिं उवायओ सो कमेण परिहरिओ । तो उवसंपज्जेउं अन्नगुरूणं इमे सब्वे ॥१४॥ . an • ॥१४६॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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