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________________ १६९ M - चुलिका । चलिका। १६९ भाषासमितिमुन्मुच्य मौनं कलहकारिणः । क्षमणं च गुरूद्दिष्टमपि षट्कर्मदेशिनः ॥४५॥ ___ अर्थ-जो मुनि भाषा समितिको छोड़कर कलह-लड़ाई करे उसको मौन प्रायश्चित्त देना चाहिए और गृहस्थोंके जिससे छह निकायके जीवोंको वाधा पहुचे ऐसे वाणिज्य आदि छह कर्मोंका उपदेश करनेवालेके लिए उपवास प्रायश्चित्त है बाजो कुछ गुरु बतावे वह मायश्चित्त भो उसके लिए है॥४४॥ असंयमजनज्ञातं कलहं विदधाति यः। बहूपवाससंयुक्तं मौनं तस्य वितीर्यते ॥४६॥ अर्थ-जो साधु, जिसे मिथ्यादृष्टि लोग जान जाय-ऐसी कलह करे तो उसको बहुतसे उपवास और शैन मायश्चित्त देना चाहिए ।। ४६ ॥ कलहेन परीतापकारिणः मौनसंयुताः। उपवासा मुनेः पंच भवंति नृविशेषतः॥४७॥ अर्थ-जो लड़ाई-झगड़ा करके संताप उत्पन्न करता हो उस मुनिको मंदग्लान (रोगी) आदि जानकर मौन संयुक्त पांच उपवास देने चाहिए ॥ ४७ ॥ जनज्ञातस्य लोचश्च बहुभिः क्षमणैः सह । . आषण्मासं जघन्येन गुरुद्दिष्टं प्रकर्षतः ॥४८॥ अर्थ-जिस कलहको सव लोग जाने उसका प्रायश्चित्त
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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