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________________ - - छेदाधिकार । १४१ करके पारणा करे एवं बारह वर्ष तक करे। और मध्यम छह छह उपवास कर पारणा करते हुए सात सात उपवास कर पारणा करते हुए बारह वर्ष तक करे ॥२४४॥ एवमाद्यनुपस्थानप्रतिसेवाविलंधितः। प्रायश्चित्तं तु पारंचं प्रतिपद्येत भावतः ॥२४॥ ___ अर्थ-इसादि अनुपस्थान परिहारके योग्य दोपाचरणोंका जो उल्लंघन कर चुका है वह परमार्थसे पाचक मायश्चित्तको प्रास होता है। भावार-ऐसा दोषाचरण जो अनुपस्थान-परिद्वार नामके प्रायश्चित्तसे दूर न हो सकता हो ऐसी दशामें इससे ऊंचा पार चिक मायश्चित्त दिया जाता है।॥ २४॥ . अपूज्यश्चाप्यसंभोगो दोषानुद्देष्य गच्छतः। बहिष्कृतोऽपि तद्देशात् पारंचो तेन स स्मृतः॥ अर्थ-यह अपूज्य है और अवंदनीय है इस तरह दापोंकी उढोपणा पूर्वक वह देशसे भी निकाल दिया जाता है इसलिए वह साधु पार चिक कहलाता है। भावार्थ-ऋपि, यति, मुनि और अनगार इस चातुर्वण्य संघको बुलाकर कि यह अपूज्य है अवंदनीय है, भापण करने योग्य नहीं है, महा पातकी है, इम लोगोंसे बहिर्भूत है इस तरह उसके तयाय दोपोंको कहकर वह गणसे और उस देशसे भी निकाल दिया जाता है और जहां पर कि लोग धर्म-कर्मको नहीं पहचानते वहां जाकर पाय
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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