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________________ [ ५६ ] ॥ कवित्त ॥ माछ सरीखो महर, तुहीज वाराह जिसौ तन । जादव रिमियो जेठ वाह मधवन विदावन । विज वैरां रा विसन, चीर झडप व्रख वसियो। ऊं नां तूठी अनत, हुग्रो मन मांही हंसियो। वन माहि वजाड़ी वासळी, महीयार तु सा मिळे । आजरै घणे हुइ ऊलट, व्रम मूरति साम वळे ॥१०॥ व्रम मूरति व्रजराज, निरति खेलियो निरतरि । राम वधारी रात, हुई जुग लाख तणी हरि । रास निमो रहमाण, मुगति दीन्ही महिलां नां । गोकळ मां गोविंदो, वळे मिळियो विहला नां । तोवह वखत ऊखळ तणे, सवळी राढू साधियो । जसोदा जोइ पीरदान जण, बहनांमी नां वाधियौ ।।१०७॥ बहनामी वाधियो सु तन कमेर सुधरिया । हरि सारीखा हुआ पाप अगिला परिहरिया। दड़े काज जळ डोहि, नाग नाथियौ निभै नरि । पुठे चढियो प्रभु, तुरत तिखराव गयो तरि। ब्रिजराज जुओ ब्रिजवासियां, मोहण रा निरखौ मता। कमाळी ब्रह्म डडवत करै, देखरण प्राया देवता ॥१०८।। देव नंद रै दुवारि, करै औठा कितराई। वैकुठ आवी वहै, कमी न दीस काई । गावै तु वर गीत वेद उचरै ब्रहमां। निमो नद रा नेस आज ऊतरै अक्रमां। किसन सिर फूल विरखा कर, अमर तमास पाइया । निहग धरि वीच मावे नही, सुरे विवरण सवाहिया ॥१०॥ सुरा तणे सिरदारि, असुर फाड़ियो अघासुर । पछे वगासुर पाड़ि वळे मारीयो वछासुर ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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