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________________ [ ५८ ] वसदेव घरे पाया वहे, तु होज रजोगुरण सत तमो। देवकी वाळ धन देवकी, निमसकार तुना निमो ||१६|| निमो निमो नान्हिया, किसन कनहिया काळा । प्राण जसोदा प्रभु, विसन नंद आगरण बाळा। सकटासुर साझीयौ तैईज मारीयौ तिगवत । 'पळ गमीयो पूतना, वडो मांडीयौ सदाव्रत । रोज रा रोज गाजै असुर त्रीकिमि मारै से तरै। पालणे माहि हीडै प्रभु, घण नामी भगतां घरं ।।१००। भगते भी भाजियो, नद उपनंद निचीता । हसै जसोदा हीयौ, सरव प्राणी ग्रिह सूता । माटी खायै मुकन, देव नर नाग दिखाळे । मुंह मोटो महाराज, वसुह आकाश विचाळे । ओळमा किसन लावै इधक, छीका छोडण झालि है। विज रे त्रिया आवै विढण, पूत जसोदा पालि है ॥१०॥ पूत जसोदा पालि, करें चोरै घी चाटे । माखरण लूट महर, अधकि बाकळा उभाटै । किसन धवै कूकड़ा, वाट बांधै विगताळो । दही तरणी ले दारण छाछि ढोळे छोगाळी । गुयाळिया साथि भूखौ गयो धेन साथि घेना धरणी। वांभणा जिगन बोया बहत उधारी वाभणी ॥१०२॥ ॥हा॥ वहन उधार वाभरणे, जोइ जीमै जगदीस । साच पियारो साइया, कूड़ करी की रीस ॥१०॥ भगतां रा घट भांजिवा, आयौ ईद अजाण । औ गोरधन उपाडियो, कर सखरौ कलियांग ॥१०॥ चरण नद ना ले गयौ, ब्रहम ले गयौ वाछ । वरिणि बहिमि ही वाचियो, मिनिखि नही तूं माछ॥१०॥
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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