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________________ [ २७ . ] पुरख डोकरा विरिध गरढा पुरांणु, । - वडे सांमि रा वेद वाचे वखाएं। वडा सामि ते विसव किमि करि वरणायो, सरग सात पाताळ मुख मां समायो। वडी ताहरौ मुख उरळी विसाळू , किसन तूझ नां निमो तुझ काळ काळ्। अधिक तुझ आदेस कान्हड अकिरिता, किसन ताहरी कोप आदेस करता। अलख नान्हीग्री निपट मोटी अपारू, अलख रूप अणरूप भगतां उधारू । अलख काज अकाज जायौ अजायो, प्रभु ताहरौ पार किण ही न पायो। प्रभु ताहरै पिंड नह कोय प्राणी, जोगी ताहरी वात किरणही न जांगी। जोगी तुझ ना जयौ जूना जुवारी, महादेव माहेस अणकल मुरारी। महावीर वीराधि अंकल - मलं, अधिक आप उदार दाता अदलं । प्रथीनाथ ससमाथ तू पातसाह, अग्राह अवाह अलाहं अथाहं । निगुरण नाम नह नाम निसवाद नाथू, हुने मुगति देता सरिस तूझ हाथू। निमो वरन अवरन प्रधान पुरुष, सामी कोई सूझ नही तुझ सरखं । सामी श्रब तू श्रब तूं श्रव सासं, अखिल भूत तू अंक तूं अविरणासं। गरुड़ ऊपरा चढ वैकुण्ठ ग्रामी, निमस्कार तोनं निमो सहस - नांमी।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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