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________________ । १६ ] बांभण डेलू बोलिया, काइम राजा केथि । 'धिणी तुहारो धारुपा, श्री जोइ वैठे अथि ॥१६॥ भाटी ऊगमसी भली, साधां री सिरणागार । बाहड आसा वारहट, जमले माहि जुहार ।। ६० ।। राणी कू भी राइमल, मेही हरिभम पीर । सिगळणं नां सुभराज छ, पावू गोगा पीर ॥६१ 11 कमध अनोपै करण रो, आईदान अवदाल । काइमि सां वाता करे, अमरसिंघ अजमाल || ६२॥ अकल जघा आइया, विमळ वहिथिया वाज। , जळ-मारणसिया जोइया, सूप कना सुभराज ॥६३ ॥ "कवि किम करि लेखो कर, पांडव प्रघळा पाय । पार न जाणे पीरियौ, साध घरणां ससमाथ ॥ १४ ॥ मलिकि मुलाणां मोकळा, खासौ रूप खुदाइ। दीसै दरगहि देवर, गोदड कविली गाइ ॥ ५ ॥ काइम रौ दरसण कर, पीपै सरखा पीर । गोसाई रे गोठ मा, के नामदे कबीर ॥६६॥ मधकर मीसग मानियौ, परमेसर र पासि । मेला सखरा माडिया, सूरतिगिर सावासि ॥ १७ ॥ प्रौप साह ऊहड अभग, कमधज करिणाळा । हाथ जोड हरजी हंस, साहिब बिरसाळा ॥१८॥ 'पापी घारणी पील्हिजे, दीन तरणे दरवार । “कूड़ा कावड़ कूटिज, औपा करिओ नियारि ।। ६६ ॥ हरिचद राठी पीर हु, धन राठी धनराज । 'नाहरखान नरेस ना, सुकवि करै सुभराज ।। १०० ॥ देखो वीको देवली, पांच रिखियौ पात्र । 'भाई बलूडा भागचद, वीठुल सा करि वात ॥ १०१॥
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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