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________________ [ १७ ] तुलछी गिरि तारण तरण, दळ मिळिया अवदाळ । सूरिजमल सिरिदारसी, दुरजसिंघ दुझाळ ॥१०१॥ भइयौ सीतळ भारथी, साची साध ससार । सुदर 'जेठी सारिखे, मिळिसै जमै मझार ॥१०२॥ पूरी साध पिचारिणयो, नाका(रा) रो नेम ।' वारट ना प्यारा बहत, हाथीड़ी नै हेम ॥१०३॥ हरिजन सहि भेला हुआ, हुई किलग रै हार। वाल्हो तुमां वीठला, गोविदि लाखौ गुबार ॥१०४॥ मुंहतो रतन महेसरी, तिलो कुअर तुडिताण । ' केसरि नांखे तू करे, पालमजी री आरण ||१०५॥ नागा नवखंड रा नरा, गोविंद चकर गदा । गोडवाड़ गिरनार रा, साधा सुवा सुदा ॥१०६॥ फतियौ फिरिस फौज मा, मुंडा रै उरि भाहि । डोहा करिसै दोनियौ, मुसे रै घर 'माहि ॥१०७॥ वारट झरोखे बैसिसै, काइम हदै कोटि । रेखी बैठी राज मां, राणी करिस रोट ॥१०॥ 'गिरगुण दाखै नारिणा, फौज किलग री फौत । ते सखिर चारै सही, गाईया नां गुहिलोत ॥१०६।। विमळ मजीरा वाजिया, के तांती झरणकार । भजन कियौ मिळि भाइयाँ, :ौं तूठी अवतार ॥११०॥ घणी नूर अनरै घरे, अति निपजसै अंन । साधा ना तूठौ सही, काइम राउ किसन ॥१११।। तू तू हीज हिंदू तुरक, भेळी हू भगवान । एकिरिण थाळि आरोगिज, पेड़ा ने पकवान ॥११२॥ के फेरा जीतो किलग, हुश्री कपिल दत्त हस । रांमण कितरा रेसिया, कितरा जीता कंस ॥११३।। केई प्रवाड़ा तें किया, आखा कितरा एक । बळि छळियी फेरा वहत, हरण सरीखा हेक ॥११४॥
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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