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________________ [ १५ ] ग्यान ठगारौ गोडियो, संकर करिसे सेव । बीठुल मांहि विराजियौ, दरसण दोरौ देव ॥ ७६ ।। प्रघळा दईत पछाडिया, भिड़ि जीता भाराथ । ताहरौ दरसरण त्रीकमा, साध करै ससमाथ ॥ ७७॥ पूरी सूरै पाइयो, भुयरण तिहु चौ भूप । साधेई साराहियो, पालम साह अनूप ॥ ७८ ।। घण सोहागण मेघड़ी, भली तुहारौ भाग। बारट ईसर वोलिया, सथिरि रहै सोहाग ।। ७६ ।। काइमि री बारट कहै, ठकराणी श्रे ठीक। साहिब राघव सारिखा, तू सीता सारीख ।। ८०॥ आघी बैठौ ईसरी, जोत हुई जजमान । मात विराजी मेघडी, गादी बैठो ग्यान ।। ८१॥ राउत रिणिसी रामदे, वडिमि घिरणेरी वाह। सगळाई साधा सिरै, नेतळदे रौ नाह ॥२॥ रामइयो अजमाल रौ, आलमजी री यार । साभिळिस कलिमा सही, पीरिया तरणी पुकार ।।८।। साघ विजैसी सारखा, सेलारसी सरीख । पदवन रै लागा पगे, ऐ जोइ नइणे ईख ॥४॥ मलीनाथ राउळ मुदै, रूपादे राणी । जमले पायो जेसली, तोरल कठियांणी ॥ ८४॥ सोढी लालो नै समस, साहसधर रसधीर । मोटी दाराव मारियौ, भगवति कीधी भीर ।। ८६ ॥ किसने खीची रै किन्ही, लालै नै हरिदास । कर जोड त्रैवइ कर, आलम ना अरदास ।। ८७ ॥ पदमा . देवाइचि प्रघल, ब्रह्म वखाणे वाह ।। पूजळदे रे प्रेम सा, पायौ जमै अलाह ॥८॥
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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