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________________ ( ४४ ) धनख (६१)-धनुष । । धारा (१६)-धारु नामक चमार धनी (१०२)-बन्य, धनवान । जो मल्लिनाथ के घनुपधर (३६)-~धनुष को धारण समकालीन थे। करने वाला। घिखीयो (८०, ८२)-कोप किया, घर (८८)--भूमि, स्थान । बुध हुआ। घरण (४७)-पृथ्वी घिरिणया (२१)--स्वामियो धरणि (४७)-भूमि, पृथ्वी। घिणी (६२, ६४) स्वामी घरणी (३८)—पृथ्वी घिणी (७, १६, २०, ४८, ६१, ६६, धरणीधर (४७, ६३, १००)-घरणी| १००) स्वामी, मालिक । को धारण करने वाला, | घिणीया (१६)-स्वामियो, मालिको। विष्णु, शिव शेष, कच्छप | घिणीयाणी (२०)-स्वामिनी, मालिक। आदि घिणीयाणी (२१)-स्वामिनी, मालकिन घरण (२१) अनशन विशेष घिरिरिण (८६)-धर, पृथ्वी । घरम (४१, ६८, १.१)-धर्म धीक (६१, ८७)-मुष्ठिका प्रहार । धरि (३८)-धारण करके। धुरिणसं (१२)-घुमाएगा घरिण (८६)-पृथ्वी घुवै (८६)-वजे, ध्वनिमान हुए। घरियो (५५)-ग्रहण किया। धू घर्ड (८५)-खुले प्राम, पूर्ण । घरिस (८९) धारण करेगी। पूजि (९४) -- कपायमान हुई। धरै (४७, ५२)-धारन करता है. रख | घृत ( ४ )-~धूत दिया। घूवका (६६, ८७)-गिरने की ध्वनि, धर्व (५८) जलावे, जलाये । गिरने की क्रिया । धाख (२६)-अभिलापा करते है। धूवकाई (६७)-प्रहार किया, गिरा घाडि (५०)--शरीर? दिया। घातां (३९)-ध्यान करने पर, दौडने | धेन (६२)-धेनु, गाय । पर। घेनां (१४)-गाये धानंतर (३)-धन्वंतरि वैद्य । धोख (८७)-नमस्कार करके । धानु (४५)-अनाज घोमरिखा (१४)-धौम्य ऋषि । धारी (१०३)-धारण करने वाले। । घौड (३९)-दौड, पहुँच ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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