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________________ [ ३ ) विद्यमानता का पता चलता है। पीरदान और हरिदास · इन दोनों पिता-पुत्रो के लिए खरतरगच्छ के जैन यति शिवचन्द्र, देवचन्द्र, लालचन्द, उदयचन्द ने कई ग्रन्थ इन गुटको मे लिखे है, इससे उन यतियो के साथ इन पिता-पुत्रो का विशेष साहित्यिक सम्बन्ध रहा मालूम देता है। श्री सीतारामजी लालस के पत्रानुसार तो ये दोनो गुटके उन्हीं के संग्रह मे थे । जिनमे से एक को राजस्थानी रिसर्च सोसाइटी, कलकत्ता के लिए श्री भगवतीसिंह वीसेन उनसे ले गये थे और अव वह उक्त सोसाइटी के सग्रह (जालान-स्मृति-मन्दिर ) मे है । हमे इसका विवरण सोसाइटी के मुख-पत्र "राजस्थान" के वर्ष २ अंक २ मे पढने को मिला था। श्री सीतारामजी लालस से उनके संग्रह का दूसरा गुटका कई वर्ष पूर्व मुझे प्राप्त हुअातो मैंने उसमे प्राप्त पीरदान की रचनायो की प्रतिलिपि करवा ली थी पर उस गुटके मे कई पत्र कम थे, इसलिए "ज्ञान चरित" नामक ग्रन्थ के प्रारम्भ के ४० पद्य और वीच के भी कुछ पद्य नही मिल सके थे । अतएव सोसाइटी के संग्रह वाले गुटके को प्राप्त किये विना "पीरदान ग्रन्थावली" का प्रकाशन सम्भव नहीं था। इस बार कलकत्ते जाने पर विशेष प्रयत्नपूर्वक श्री रामकृष्णजी सरावगी की कृपा से वह गुटका प्राप्त किया गया। उसमे सीतारामजी के सग्रह के गुटके के अतिरिक्त "हिंगलाज रासो", "पातगि पहार" और बहुत से से डिंगल गीत प्राप्त हुये और उसीसे ज्ञानचरित का त्रुटित अंश भी पूरा किया जा सका, इसलिए श्रीरामकृष्णजी सरावगी का मैं विशेष आभारी हूँ। कलकत्ते की आवहवा हस्तलिखित प्रतियो के लिए बहुत ही घातक है । अतएव इस गुटके के कई पत्र तो जंतुओ द्वारा भक्षित होकर जाली जैसे सछिद्र हो गये है। कुछ पत्रो के ऊपर का अंश कट गया है इसलिए कई डिंगल गीतो का पाठ-त्रुटित रह गया है, फिर भी यह अच्छा हुआ कि अधिक नाश होने से पूर्व ही इसका उपयोग कर लिया जा सका। इस तरह पीरदान की प्राय समस्त रचनाएँ इस ग्रन्थावली मे प्रकाशित कर सकने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हो सका है।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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