SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २ ] रूप में स्मरण व उल्लिखित किया है। 'ईसाणद गुरू चित मा प्राणा ( गुण नारायण नेह), "ब्रह्म सतगुरु हुँता वडो, ईसरदास अनूप," "ईसाणद पाराधियो" (गुरण अजपा जाप)। 'पातगिपहार' मे भी उनका स्मरण किया है "ओथिए साहिब उपना, भोमि निमो भाद्रेस । पीरदास लागे पगे, इसाणद आदेस ॥" कवि पीरदान की सभी रचनाएँ सवत् १७६१-६२ मे लिखी गई दो प्रतियो मे मिली है और उनमे से कई तो उनकी स्वय की लिखित भी है इसलिये पीरदान का समय स० १७६० से १७६३ तक का निश्चित होता है । इस समय ईसरदान को स्वर्गवासी हुए एक सौ से अधिक वर्ष बीत चुके थे इसलिये पीरदान का उनका प्रत्यक्ष गुरु-शिष्य का सम्बन्ध रहना तो सम्भव नही लगता। अत. यही संभव है कि भक्ति की प्रेरणा उन्हे ईसरदास की रचनायो से ही मिली है और इसी कारण उन्होने ईसरदास को गुरु के रूप मे उल्लिखित कर दिया होगा। ईसरदास की रचनाओ से पीरदान लालस इतने अधिक प्रभावित थे कि अपनी रचनायो के सग्रह गुटके मे ईसरदास की रचनायो को उन्होने स्वय लिखकर सग्रहीत किया है। इनमे से कई रचनाएँ तो ऐसी है, जिनकी अन्य कोई भी हस्तलिखित प्रति कही भी प्राप्त नहीं हुई अर्थात् यदि पीरदान उन्हे अपनी रचनाओ के सग्रह वाले इस गुटके मे सग्रहीत नही करते तो उनका आज प्राप्त होना भी कठिन हो जाता। - पोरदान के सम्बन्ध मे विशेप जानकारी प्रयत्न करने पर भी प्राप्त नहीं हो सकी । उनकी रचनाओ के दो सग्रह-गुटके प्राप्त हुए है उनसे केवल इतना ही पता चलता है कि वे जुढीया गाँव ( मारवाड ) के निवासी थे। उनके पुत्र का नाम हरिदास था। हरिदास रचित "गुण छमा पर्व" और "डिंगल-गीत" इसी गुटके मे है। कई रचनाओ की लेखन प्रगस्ति मे हरिदास नाम आता है और उनके खुद की लिखी हुई कई रचनाएँ भी इस गुटके मे है जिनसे संवत १८०७ तक उनकी
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy