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________________ वीरवाण लष वैरै वीरम लियै सांढयां अांपांणी । दोय कोसां पूगो दलो लारै लुणीयांणी ।। मानों मानों मारकां सचो सलषाणी। मलिनाथ जगमालसुं तिण किसड़ी तांणी ।। आप तणी धर छोड़के आयो आपांणी । आपां मारण उठीया लष कोट लगांणी ॥ . ४१ लष वे रैसुं थट लीयां चढ़ कमंध चलाया । मोढलरै गढ पाषती एकण दिन आया ।। सरवर भरीया नीरसुं तरवर तट छाया । वीरम जेत विराजियां जाजम विछवाया । मोटल आवै मिलणकुं जहुवार कैवाया । जिसकी बाटां जोवता ओ भी चढ आया ।। केइ पकवान कढाविया वाकर बटकाया । हरिया मन राजी हुई गीतां गवराया ।। मोहले महले मंडली रंगराग रचाया । मुंगे अतर गुलाबका छिड़काव कराया ।। पोळां तोरण बंधीया सामेल सझाया । ऊपर मोती वार वार भल थाळ भराया ।। मोटल मिलीयां वीरमे आफु गळवाया। आफु हात उछाळके छळ चोट चलाया। मोटलकु भी मारीयो बेली बफनाया । धन लुटे लीधी धरा गढकुं अपणाया ॥ हरीया झाले हतसुं रथ पर चढ़वाया। हरीरा जेवर सुतन वीरम संभलाया ।। प्रोयत संग पठायके साहिवाण पुगाया । सो आया साहीवांणमै कूका कर लाया । मदु अषै मारको अत वेढ अघाया। जंगमां चढ़वा जोइयां वीर रस छाया ॥ . ११..
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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