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________________ ४२ ११८ वीरवाण मोटलका धन मांगसां ले वैर सवाया। षाफर हिंदु काटकै करसां मन भाया । पोडां धर धूज पड़ाहीवै दलजी चढ़ आया । बातांसुं बिलमायकै ज्यानै जजमाया ॥ सीहै कहीया बचन सब नांही मन भाया। सुगन विचारो सुगनियां ए जाब कहाया । पांच दिहाड़ां पाळीयां मत बाहिर जाया ।। सुगन भला ले साथ सब भरजो पग भाया । दहा दले चिगायो देसन, इसड़ो बुध अांबेज । भायांनै भोळावतां, जिणरै कोसुं जेज ॥ [सोरठो] सरणायां साधार, दलै जिसो नह देषीयो। वीरमरा विनपार, जबर गुना जिण जारीया । नीसांणी दल भेज प्रधांनकुं ए जाब अपंदे । वीरम तुम गुना करो हम जाय षिमंदे ।। ढाबो ढाबो ठाकरां धर पाय धरंदे । मदु न मानै माहरी कल काहे करंदे ॥ हेकण जगा न मावही दोय सेर बकंदे । हेकण म्यान न मावही दोय षाग धकंदे ।। तुम हिंदु गुना करो मुष बोलो मंदे । दोय घर डाकण परहरै गाम धणीयां हंदे ॥ आष वीरम राठवड़ आगळ पलावै । डाकण किणनै परहरै जब भूषी थावै ।। गुण भूलो सारा दलो परधान मेलावै । आय प्रधांनसुं अषीयो वीरम वट पावै ॥ ११६ ४३
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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