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________________ वीरवांण ओ धन वीरम आपरै घरमै नह मावै । वीरम औ भष वाघरो पोह केम पड़ावै ॥ मंडोवरगा नारका मिल मुगलां मीयां । वासै चाढो बाहरां ढोलां पड़ ध्रीहां ॥ तीन सहंस चढ़ीया तरां अस लारै दीयां । जाण न पावै जीवंता असरपीयां लीयां ॥ मोकळ कला भारभल पुत्रे जिण जाया । वीरम वंका वीरवर उदै घर व्याया ।। इण कारण पड़ीया अठे जंगलपुर आया । सांमत सारा सांपला अत वेढ अघाया ॥ १०७ दहा उदाउ सहर आवीया, कुतमदीन पतसाह । षत्रवट खेत बहारजे, रजवट हंदा राह ॥ नीसांणी उदलकुं पतसाहजी ए हुकम अषंदा । कमधज आद अनादसै खूनी मुझ हंदा ॥ लीया षजाना साहदा तुझ नाहि जरंदा । उदा गुनगार तु . पतसाहां हंदा ॥ साह तणां दल सामठा जंगलपुर आया । जुंजाउ पतसाहरा नीसाण वजाया ॥ सहर भिल्यो जद सतां मिल लूटी माया । वीरम षातर सांपला सिर कीध पराया ॥ वहादर उदै क्रोध कर रिणताल रचाया। लड पतसाहां सांपला भुजपाण दिषाया । ३७ ३
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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