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________________ वीरवांण १७ तुटि सिंधसुं ईण तरै, जोइयां गहियो जोर । सिंध तणी धर सोवनी, मधु उडाया मोर ॥ नीसांणी जद झडपी सिंध जोइयां सांतू चढ सारी। रयत सारी सिंधरी दरबार पुकारी ॥ जंग मचायो जोइयां सुणीयो जग सारी । जिण पर जीवणंषाननै तद कीध तयारी । मदु जीवण मारका भिडिया रिण भारी ।। सार भला भल साझीया भालां भळकाया । सिर तुटा फुटा सुघट रत पाल चलाया ।। मादु बाहादर मारकै षळ रिण केषाया। घट पड़ीया घट घायलां रिण जंग रचाया । जीवण मारै जैतका त्रमंक वजाया। लुटै सिंध जंग जीत कर इळ मीणीयर आया । २० मैमंद नै जगमालरै, जबर बैर ो जांण । आया सरग जोइयां, सिंध छोडे साहिबाण ॥ मलीनाथ बंदु मुदै, वीरम करै सु बात । अंतहपुर वीरम त्रीया, मांगळीयाणी हात ॥ . नीसांणी . माल तलै घर बार मझ वीरम वरदाई । सारो वीरमरो सरब थित मंगळ थाई ॥ मिलिया वीरम जोया भेळप दरसाई । पाया . डोढी ऊपरै सामल साराई ।।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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