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________________ वीरवाण वा झगड़ो हुवो जिसो वरणो। तिणरी हाजरी जोयांनै साही वाण मै तैजलरे -आगे दीनी। राठोड़ानै सेतरावै मंडोरकेतुमै चुडेजी देवराजजीने हाजरी दीनी । पछै चडैजी मंडोवर लीवी जिणरी हगीगत मनै कही। जिण रीत जस वणाय हाजरी दीवी। जा पछै नगर जाय जगमालजीने वा कंवर रिडमलजीने हाजरी दीनी। जद पैला झगड़ा हुवा जकांसुं हुं वाक्व हो । फेर कितीक हगीगत वाँ कही जिण मुजव पर्छ बणाय ग्रन्थरै आदमै वरण दीनी छ । हु तै झगड़े मधु वीरमजीरें वात हई जकण ठौड़ में के दीनो छ नला सला नीव. सो जाणे । अलामें निजरां देखी वा कांना सुणो जिण मुजव सची-सची वरणन करी छ । सो मारे ग्रन्थमें भूल चूक हुवे तो कवी लोक सुधार लेसी । wr दूहा उकत समापो इसरी, माता सुण महमाय । गाऊं हुं लुणीयाणीयां, सांचो सुजस वणाय ।। दलो मधू देपाळ जसू, जैत देवति जमाल । सुत सांतू लुणरावरा, पतसाहां उर साल ।। जकां दिनों ए जोइया, लावे दस दिस लूट । षगधारां ऊपर षिमै, तारां जिम ही तूट ।। कोड च्यार रोकड़ कीमक, असरपीयारां ऊंट । सांप्रत मैमंदसाहरा, लायो मादव लूट ॥ दलो मधू देपाळ दे, सिंध गया स्रब जाण । . तुटी मैमंदसुं त दिन, छूटी धर साहि वाण ॥ मैमंदधरि सारो समन, जद यूं लिष्या जवाब। सिंधां लेसुं सात ही, द्र बरै बदलै दाब ।। सिंध धणी कद संकीया, मैमदरा सुण बोल। दो मोहरां पाछी दला, तिण दिन रहसी तोल ॥ जोइयां बदळे जावसी, सहर समेती संध। दलै समझायो दुझल, मानि न मदू मदंध ॥ ६ ७०
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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