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________________ वीरवांण मांगलियाणीसुं दलो भलहो धूम भाई । सात पोसाषां सातसो मोहरां गुंजराई ।। बेस किसुंमां सुवर्ण भूषा सिपवाई। आया सरणे आपरै प्रोडी उतराई ।। दलै कयो इण देसमै वैसां मै बाई । वीरमरा मै सांपरत सह कोय सिपाई ।। अरज करो थे आपसुं मो जाएँ भाई। रावलं सरणै राषसी . वको वरदाई ॥ दूहा मांगलीयाणी मोढ मन, पायो जोयो पीर । दलों, मदु, देपालदे, सांतुं वीर सधीर ॥ ७४ ७४ ७५ ७६ राणीजीरी अरज मारो काको जैतमल, आप तणी की आस । मांनै तो जगमालरो, मुळ नहीं वैसास ॥ दस हजार जोया दुझल, घरची घररी षाय । प्राडा पासी आपरै, अवषी विरीयां मांय ॥ मांगलीयाणी महलरी, धीर म मानी वात । जरां ढवाया जोइया, सुष पायो सब साथ ॥ मुजरो रावल मालसुं, दीरम दियो कराय । माल कैयो इण मुलकमैं, बसो पान थे प्राय ॥ दलो. रहै दरवारमै, जोयो प्रारूं जाम । जंगा मझ भिडीयां जवन, काढे मोटा काम ।। तलवाडै थाणौ त,, पमंग रहै सो पांच । माल धणी घर मायन, आवण दिये न आंच ७७ ७६ ०
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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