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________________ १५ . वीरवाण परतक पोर पचीस मो चोवीस सिरारा । कया विगडै उसका कहो काम तकरारा । केस. वळे मुष केसरी कुण लेवणहारा । मिण लेवण वासष मुषां कर कोण पसारा ॥ गींदोली जगमाल घर नह देवणहारा । मैमंद गोरी घर गया कर कुच सवारा ॥ माल वधाया मोतीयां भर थाळ सोनारा ।। दूहा तीन लाष जुध मत दिन, घोरा जवन चलाय । जुध जीत्यो जगमालदे, लीधो माल बधाय ।। पग पग नेजा पाड़ीया, पग पग पाड़ी ढाल । बीबी बुजै षांनने जोध किता जगमाल ॥ - गींदोलीरी लड़ाई में झगड़ा तीन तो रावळ मालदेजी आपरै लोकसं एकला किया । झगड़ो चोथो भाटी घड़सी रावळजी वीरमदेजी कंवर जगमालजी सोलंषी माधोसिंघजी । पांचमो झगड़ो कंवर जगमालसिंघजी एकलां भूतांरे जोरसे कीइंयां । पांचां झगड़ामें तीन लाष आदमी षेत पड़ीया । अठी राठोड़ारा आदमी लाष छा जांमासु आदमी हजार पचीस न पड़ीया । माहाराई चक्र जुध हुवो। जोईया राठोड़ा कनै आया जिंणसँ वरस पांच पैला ओ झगड़ो हुवो छो । हूं वादर ढाढी जोयारो ही । सो मै पूछनै सुणी जिसी हगीगतसँ वणावट करी। मारी उकत प्रमाण रावळजी जगमाल जी वा कंवरजी रिड़मलजीर कैणसुं जस वणाय नै सुणायो । ओ झगड़ो हुवां पछै वरस बीस ओ ग्रन्थ वणायो। जोया वरस पांच अठं राठोड़ां कनै रैया। जितै हु जोयां साथे हो सो वात सारीसुं वाकब हुवो और वीरमदेजी मधुरे आपसमें फूट पड़ी। झगड़ो हयनै मारी जिया। धीरदेजी गोगादे की तांई जिती बात सारीसं मार आंषीयां आगे हुई । मै जोइयांर नंगारै माथै हो। हेत बैर सारो निजराँ देष्यो। पछ धीरदेजी काम आया। जां पछै तेजमाल जोयै मनै कैयो के बादर सिरदार मारीजियां जिण तरै हुई थे देषी जिसी सारी हगीगत वरण करो। जरां जोइयां राठोड़ां कनै आया । धीरदेजी मारीजिया जिता दिनां मै जो जो वात
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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