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________________ ५३ वीरवाण कुंप कंवर विदा कियो, पांण जोड़ कर प्रीत । दोनों भूतां दायजो, कुळमें राषण रीत ॥ भीरड कोट दळ भेळ सी, हणसी हातां हुंत । आडा किण दिन आवसी, भीडज कवलीयो भूत ॥ कुंपादै अस कवलीयो, मुषसु कहियो माल । आलण वचनां याद कर, जुड़सी रिण जगमाल ॥. कूपे दीनो कंवलीयो, जद लीनो जगमाल । रातीवासो रातरा, देवण सज्यो दुझाल ।। अभंग नगारै बंब पड़, अरिगंज पाग उठाय । कवलै आगळ धूप कर, दीयो पागड़े पाय ॥ कमधज चढीयो कवलीये, वंध्यो रोस मन मांय । दळ फिरिया दरीयांव ज्यूं, अोळा दोळा आय ॥ मुजरो कर जगमालसुं, भाष्यो इण विध भूत । कहो जको कारज करां, राज तणां रजपूत ।। जगै हुकुम दे झोकी [या], किलमां पर कैकांण । बीस सहस लगि वहण, भूतांरी केवांण ॥ मीरांरा माथ उडै, मुष बक मारो मार। . मालावत जगमालरी, वहन लगी तरवार ॥ वरण साहां घड वीनणी, सझ आई सिंणगार । जिणनै परणी जण जगो, कसीयो राजकवार ।। ५४ ५५ जबर भूत लै जाणीया, दुलही फोज दुझाल । जुध हथलेवो जोड़ियो, मालावत जगमाल ।।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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