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________________ . वीरवांण वार मंडीया नेड़ा मोरचा, तुरक लगावै ताप्न । मालै इमं कहियो मुषां, ए काइ दिये उठाय ।। जगै अरज कीधी जरां, अभंग मालनै आय। कुंपो है अस कवलीयो, अब दूं फोज उठाय ॥ मालै इम कहियो मुषां, सुघड़ बात दिल सौज । इण अस चढ तूं एकलो, फेरे किण विध फोज ।। नीसांणी पालण कुंपो अथ वहै जाता जैसाणे । रिण मायां भूतां रची, तंवर तेजल आए ।। आलणकुं तेजल कयो मासी सुत जाए । मैं रिणमैं अवगत गया धि भोजन पाएँ । पालण वेटी आपरी तू रिणमै आए । कंवर प्रणावो कुंपकुं जग सारो जाणे ।। धि चंवरी लागां धुंवों सुरलोक पयांए । कुंपैकुं आलणी कही अगल मुष पारणे ॥ कमधज परणी कूपसी आलण धि प्राणै । दीदो भूतां दायजो कवलो केकारण ।। फतेजीत वाजो दियो पांडो पुरसाणे । अकथ कुंपैरी इसी जग मालो जाण । वीरांरै वचनां तणो प्रायो अवसांग ॥ X . अभंग नगारो पापीयो, अरि गंज पाग उचेट। . कुंपाने अस कवलीयो, भूतां कीदो भेट ॥ . . ४८ वीरां जद दीनो वचन, हतलेवो छुटवार । याद करो जद आपरै, हाजर वीस हजार ॥ ४६
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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