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________________ १३ वीरवाण (१) जैतसिंह रो झगड़ो-जैतसिंह द्वारा गुजरात के परमारों पर आक्रमण कर राजधग पर अधिकार करना । (२) मालदेजी रो समो-अहमदाबाद के मुहम्मद बेगड़ा से युद्ध कर गांदोली का हरण करना । इसमें पांच झगड़ों अर्थात् युद्धों का वर्णन हैं । (३) वीरम जी और जोहियों का युद्ध जिसमें वीरमजी और जोहियों के सम्बन्ध, युद्ध के कारण, युद्ध का वर्णन और युद्ध के परिणाम दिये गये हैं। इसी प्रसङ्ग में दिल्ली बादशाह के अशर्फियों से लदे ऊंटों की राठौडों द्वारा हुई लूट और युद्ध का वर्णन भी दिया गया है। . (४) वीरमजी के पुत्र चूण्डा द्वारा मंडोवर पर अधिकार करना । (५) वीरमजी के एक पुत्र गोगादेव द्वारा जोहियों से युद्ध कर वीरमजी की मृत्यु का बदला लेने और वीर गति प्राप्त करने का वर्णन । उपरोक्त पांचों ही घटनाएं इतिहास-प्रसिद्ध हैं और सम्बन्धित ग्रन्थों से प्रमाणित होती हैं । विषेश प्रमाणों के अभाव में इन घटनाओं को अनैतिहासिक नहीं ठहराया जा सकता । अन्य इतिहास ग्रन्थों से भी किसी न किसी रूप में सम्बन्धित घटनाओं का समर्थन होता है । सम्बन्धित विषय में प्रमुख इतिहासकारों के मत इस प्रकार हैं-- स्व. डा० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा मुहणोत नैणसी लिखता है-'वीरम महेवे के पास गुढ़ा ( ठिकाना ) बांध कर रखता था । महेवा में खून कर कोई अपराधी वीरमदेव के गुढ़े में शरण लेता तो वह उसे अपने पास रख लेता । एक समय जोहिया दल्ला भाइयों से लड़कर गुजरात में चाकरी करने चला गया, जहां रहते समय उसने अपना विवाह कर लिया। कुछ दिनों बाद वह वहां से अपनी स्त्री सहित स्वदेश की तरफ लौटा। मार्ग में महेवे पहुँच कर वह एक कुम्हारी के घर ठहरा और एक नाई को बुलवाकर अपने बाल बनवाये । नाई ने उसके पास. अच्छी घोड़ी, सुन्दर स्त्री और बहुत सा धन देखा तो तुरन्त जाकर इसकी खबर जगमाल को दी। अनन्तर जगमाल की याज्ञानुसार उसके गुप्तचर कुम्हारी के घर जाकर सब कुछ देख भाल आये। कुम्हारी ने इसका पता पा दल्ला से कहा कि तुम पर चूक होने वाली है । फिर रक्षा का मार्ग पूछे जाने पर उसने उसे वीरम के पास जाने की सलाह दी। तदनुसार दल्ला अविलम्ब स्त्री सहित वीरम के गुढ़े में जा पहुँचा। पांच - सात दिन तक वीरम ने दल्ला को अपने पास रखा और उसकी भले प्रकार पहुनाहि की। विदा होते समय दल्ला ने कहा कि वीरम, आज का शुभ दिवस मुझे तुम्हारे प्रताप से मिला है । जो तुम भी कभी मेरे यहां अायोगे तो चाकरी में पहुँचूंगा मैं तुम्हारा राजपूत हूं । वीरम ने कुरालतापूर्वक उसे उसके घर पहुंचवा दिया।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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