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________________ वीरवाण वीरमजी के पाँच पुत्र थे, (१) चूडा,. (२) सत्ता, (३) गोगादेव, (४) देवराज और (५) विजय राज । उपरोक्त युद्ध के पश्चात् कवि ने चूण्डा के प्रसङ्ग में लिखा है कि एक समय चूड़ा सोया हुआ था । तब उस पर सर्प ने अपने फण की छाया की । तब पास ही खड़े बारहठ आला ने नाना कि चण्डा वास्तव में कोई छत्रपति राजा है। फिर चण्डा द्वारा घास की गाड़ियों में सैनिक छिपा कर मंडोवर गढ़ में ले जाने और गढ़ पर अधिकार करने का वर्णन है। तदुपरान्त गोगादेव द्वारा दल। जोहिया से युद्ध कर वीरमजी का बदला लेने का वर्णन है । चूण्डा जी ने गोगादेव से कहा कि "मैं तो मामे को मारूंगा नहीं सो तुम ही युद्ध करो।" गोगा देव ने पांच सौ सवारों को साथ लेकर दला जोहिया पर चढ़ाई की और दला को मार दिया। दला के मारे जाने का समाचार पूगल पहुंचाया गया। समाचार प्राप्त कर लुणियाणी जोहीयों ने क्रोधित होकर गोगादेव पर चढ़ाई की। युद्ध मे गोगादेव ने वीरता पूर्वक युद्ध किया और अन्त में वीरगति प्राप्त की जिसके लिये कवि ने लिखा है-- हुय सिद्ध दसमो हालीयो संग नाथ जलंधर ॥ अन्त में कवि ने "चितहलोल" गीत में गोगादेव की प्रशंसा करते हुए और काव्य की छन्द-संख्या बताते हुए अपने काव्य को पूर्ण किया है ।२ 'वीरवाण' में ऐतिहासिक घटनाओं का यथा तथ्य चित्रण करने का प्रयत्न किया गया है जिससे इम इसको ऐतिहासिक काव्य मान सकते हैं। प्राचीन काल में प्रत्येक विषय के लिये पद्य को प्रधानता दी गई है और गद्य को प्रायः उपेक्षित किया गया है। यों अपवाद स्वरूप राजस्थानी भाषा में गद्य भी प्रचुर मात्रा में मिलता है। हजारों ही वार्ताएं, ख्यात, विगत और पीढ़ियां आदि राजस्थानी गद्य के अनूठे उदाहरण हैं । ऐतिहासिक घटनाओं के यथा तथ्य चित्रण की ओर रहता है । प्राचीन काल में कई कवि इतिहासकार भी रहे हैं। ऐसी अवस्था में इतिहास के आगे काव्यत्व की प्रायः उपेक्षा हुई है और ऐतिहासिक पद्यों में कान्यत्व नाम मात्र को ही मिलता है । किन्तु “वीरवांण" के लिये ऐसा नहीं कहा जा सकता। "वीरवाण" में ऐतिहासिक घटनाओं का यथा तथ्य निरूपण किया गया है । साथ ही मार्मिक प्रसङ्गों के अनुकूल भावनापूर्ण काव्यात्मक अभिव्यात्ति भी हुई है। काव्य में वर्णित प्रमुख घटनाएं निम्नलिखित हैं-- (१) मुहणोत नैणसो री ख्यात भाग २ (का० ना०प्र० सभा) पृ०८७ । कवि राजा वांकीदासजी ने वीरमजी के पुत्र ६ माने है-- गोगादे १, देवराज २, जैसिघ ३, वीजो ४, चुण्डा ५ व पाची ६। देखिये यांकीदासरी ख्यात, वार्ता सं० ५२ पृष्ठ ६, राजस्थान पुरातत्व मन्दिर जयपुर । (२) नोगादेव राठोड़ और सम्बन्धित विपयों में प्राप्त आदेश पर बातम्व परिशिष्ट में दिये गये हैं।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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