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________________ वीरवाण "माला के पुत्रों और वीरमदेव में सदा झगड़ा होता रहता था, (अतएव) वह (वीरम) महेवे का परित्याग कर जैसलमेर गया वहां भी वह ठहर न सका और पीछा याया तथा गांवों को लूटने और धरती का बिगाड़ करने लगा। कुछ दिनों बाद वहां का रहना भी कठिन जान वह जांगलू में ऊदा मूलावत के पास पहुंचा । ऊदा ने कहा कि वीरम, मुझमें इतनी सामर्थ्य नहीं, कि तुम्हें अपने पास रख सकू, अतएव आगे जायो । तुमने नागौर को उजाड़ दिया है, यदि उधर का खान श्रावेगा तो मैं उसे रोक दूंगा। तब वीरमदेव जोहियावाटी में चला गया । पीछे से नागोर के खान ने चढ़ाई कर जांगलू को घेर लिया, जिस पर गढ़ के द्वार बन्द कर ऊदा भीतर बैठ रहा। खान के कहलाने पर ऊदा उससे मिलने गया, जहां वह चन्दी कर लिया गया । खान ने उससे वीरम का पता पूछा, पर उसने बताने से इन्कार कर दिया । इस पर उसकी माता से पुछवाया गया, पर वह भी डिगी नहीं। दोनों की दृढ़ता से प्रसन्न होकर खान ने ऊदा को मुक्त कर दिया और वीरम का अपराध भी क्षमा कर दिया । । ___ 'वीरम के जोहियों के पास पहुंचने पर उन्होंने उसका बड़ा आदर-सत्कार किया और दाण में उसका विस्वा ( भाग) नियत कर दिया । तब वीरम के कामदार कभी-कभी सारा का सारा दाण उगाहने लगे । यदि कोई नाहर वीरम की एक बकरी मारे तो यह कह कर कि नाहर जोहियों का है वे बदले में ११ बकरियां ले लेते थे। एक बार ऐसा हुआ कि ग्राभो रया भाटी बुक्कण को, जो जोहियों का मामा व बादशाह का साला था और अपने भाई सहित दिल्ली में रहता था, बादशाह ने मुसलमान बनाना चाहा । इस पर वह भाग कर जोहियों के पास ना रहा । उसके पास बादशाह के घर का बहुत सा माल और वस्त्राभूषण आदि थे । गोठ जीमने के बहाने उसके घर जाकर वीरम ने उसे मार डाला और उसका माल असबाब तथा घोड़े अादि ले लिये । इससे नौहियों के मन में उसकी तरफ से शंका हो गई। इसके पांत्र - सात दिन बाद ही वीरम ने ढोल बनाने के लिए एक फरास का पेड कटवा डाला । इसकी पुकार भी जोहियों के पास पहुंची पर वे चुप्पी साध गये । एक दिन दल्ला जोहिये को ही मारने का विचार कर वीरम ने उसे बुलाया । दल्ला खरसल (एक प्रकार की छोटी हल्की बैल गाड़ी ) पर बैट' कर पाया, जिसके एक घोड़ा और एक बैल जुता हुया था। वीरम की स्त्री मांगलियाली ने दल्ला को अपना भाई बनाया था। चूक का पता लगते ही उसने दल्ला को इसका इशारा कर दिया। इस पर जगज़ जाने का बहाना कर दल्ला खरसल पर चढ़कर घर की तरफ चल दिया । कुछ दूर पहुँच कर खरसल को तो उसने छोड़ दिया और घोड़े पर सवार होकर घर पहुंचा। वीरम जब राजपूतों सहित वहां पहुंचा उस समय दला जा चुका था । दूसरे दिन ही जोहियों ने एकत्र होकर वीरम की गायों को घेरा । इसकी खबर मिलने पर वीरम ने जाकर उनसे लड़ाई की । वीरम और दयाल' परस्पर भिड़े । वीरम ने उसे मार तो लिया पर जीता वह भी न बचा और खेत रहा । वीरम के साथी गांव बड़ेरण से उसकी ठकुराणी (भटियाणी ) को लेकर निकले । धाय को अपने (१) मुहणौत नैणसी का पूर्ण वक्तव्य परिशिष्ट में दिया गया है।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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