SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीरवाणराव रणमल के यहां तीन बार रसोई चढ़ती और वह अपने दिन सैर शिखार में बिताता था। जब सोनगिरों ने उसका वहां प्रा उतरना सुना. और उसके ठाट ठस्से के समाचार उनके कानों में पहुंचे तब उन्होंने अपने एक चारण को भेजा कि जाकर खबर लावे कि रणमल . के साथ कितनेक आदमी है । चारण ने राव के पास आकर आशीष पढ़ी, राव ने उसको पास बिठाकर सोनगिरों का हाल पूछा । इतने में नौकर ने श्राकर अर्ज की कि जीमण तैयार है । चारण को साथ लिये नाना प्रकार की तैयारी का स्वाद लिया, फिर चारण को कहा कि तुझे कल विदा मिलेगी। दूसरे दिन प्रभात ही शिकारियों ने आकर खवर दो कि अमुक पर्वत में ५ वराहों को रोके हैं । रण मल तुरन्त सवार हुआ और उन पांचों शूकरों का शिकार कर लाया । रसोई तैयार थी, जीमने बैठे, भोजन परोसा गया, साथ के लोग नीमने . लगे कि एक शिकारी ने आकर कहा कि पनोते के बादले (बहने वाली बर्साती जलधारा या छोटी नदी ) पर एक बड़ा वराह श्राया है । सुनते ही रण मल उठ खड़ा हुआ और घोड़ा कसवाकर सवार हो चला । चारण भी साथ हो लिया । सवार होते समय जोहियों को अाज्ञा दी कि पनौते के बाहले पर जीमण तैयार रहे । जब वराह को मारकर पीछे फिरे तो रसोई तैयार थी । जीमने बैठे, आधाक भोजन किया होगा कि खबर आई कि कोलर के .. तालाब पर एक नाहर और नाहरी आये हैं । उसी तरह भोजन छोड़फर वह उठ खड़ा हुआ और वहां पहुंचा जहां बाघ था । जाते वक्त हुक्म दिया कि जीमण तालाब पर तैयार रहे। चारण भी साथ ही गया । जब सिंहों का शिकार कर लौटे तो रसोई तैयार थी-सब ने. सीरा . परी आदि भोजन किया । उस चारण को मार्ग में से. ही विदा कर दिया और कहा कि नाडोल यहां से पास है । चारण ने घोड़ा हटाया, नाडोल वहां से एक कोस ही रह गया था। .. चारण ने पुकार मचाई "दौड़ो दौड़ो" । बाहर आई है गांव में राजपूत सवार हो होकर आये । चारण को पूछा कि तुझे किसने खोसा ? कहा-मुझे तो किसी ने नहीं खोसा है । परन्तु तुम्हारी धरती लुट गई। पूछा कैसे ? बोला-यह रणमल पास आ रहा है और इतना खर्च करता है, बाप ने तो निकाल दिया, फिर इसके पास इतना द्रव्य आवे कहां से ? यह कहीं न कहीं छापा मारेगा या तो सोनगिरों से नाडोल लेगा, हूलों से सोजत लेगा । इस कान से सुनो या उस कान से, मैंने तो पुकार कर कह दिया है। कितनेक दिन वहां ठहरकर रणमल चित्तौड़ के राणा लाखा के पास गया जहां छत्तीस ही राजकुल चाकरी करते थे । बड़ा राजस्थान, रणमल भी वहां जाकर चाकर हुया । . (श्रागे राणा लाखा और चूण्डा की बात, राणा का रणमल की बहन से विवाह करना और मोकल के जन्म आदि का हाल पहले सिसोदियों के वर्णन में राणा लाखा के हाल में लिख दिया है-देखो भाग प्रथम पृष्ठ २४ )। एक बार रणमल थोड़े से साथ से यात्रा के वास्ते गया था, पीछा लौटते ढढाड में पाया । वहां पूरणमल कछवाह राज करता था ( यह राजा पृथ्वीराज का पुत्र और सांभर का राजा था)। उसने रणमल को पूछा कि हमारे यहां नौकर रहोगे । उत्तर दिया-रहेंगे ।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy