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________________ वीरवाण एक दिन जोधा कांधल और पूरणमल चौगान खेल रहे थे । जोधा ( रणमल का पुत्र ) जेठी घोड़े पर सवार था । पूरणमल ने वह घोड़ा देखा, कहा हमें दे दो। कांधल बोला कि रणमलजी को पछे बिना मैं नहीं दे सकता । पूरणमल ने कहा, मैं छीन लगा। फिर जोधा कांधल ने डेरे पर आकर घोड़े की कथा रणमल को सुनाई । रणमल अपने भाई बेटे व राजपूतों सहित दरबार में आया। पूरणमल जहां बैठा था वहां उसका घोड़ा दबाकर बैठ गया । उसकी कमर में हाथ डाल पकड़कर खड़ा कर दिया और अपने साथ बाहर ले आया, घोड़े पर सवार कराया और उसके घोड़े के बराबर अपना घोड़ा रख कर ले चले । पूरणमल के राजपूत इन्हें मारने को आये तो रणमल कटार खींचकर पूरणमल को मारने को तैयार हो गया । तत्र तो वह अपने आदमियों को झगड़ा करने से रोककर उनके साथ साथ हो लिया । बहुत दूर ले जाकर रणमल ने उसे आदरपूर्वक वह घोड़ा दे इतना कह लौटा दिया कि "हमारे पास से घोड़ा यूलिया जाता है, जिस तरह तुम लेना चाहते थे वैसे नहीं।" :. अपने पिता के मारे जाने पर रणमल नागौर आया और अपने पिता के आज्ञानुसार कान्हा को राजगद्दी पर बिठाकर आप सोजत में रहने लगा। भाटियों से बैर था सो दौड़दौड़कर उनका इलाका लटने लगा । तब उन्होंने चारण भुज्जा संढापच को उसके पास भेजा । चारण ने यश पढ़ा, जिससे प्रसन्न होकर रणमल ने कहा कि अब मैं भाटियों का बिगाड़ न करूंगा । उन्होंने अपनी कन्या उसे ब्याह दी जिसके पेट से राव जोधा उत्पन्न हुआ था। अपने पुत्र सत्ता को पहेर की जागीर राव चूण्डा ने पहले ही से दे दी थी, (दूसरी ख्यातें से:) सं०.१४६५ में कान्हा का मंडोवर गद्दी बैठना पाया जाता है परन्तु . वह अधिक राज न कर सका । उसके भाई सत्ता ने राज छीन लिया, और राज प्रबन्ध अपने भाई रणधीर को सौंपा । सत्ता के पुत्र नर्बद और रणधीर के परस्पर अनबन हो जाने से रणधीर चित्तौड़ गया और रणमल को लाया. । राणा मोकल ने रणमल की सहायता कर सं० १४७४ के लगभग उसे मंडोवर की गद्दी पर बिठाया । रणमल और उसके पुत्र जोधा ने नर्बद से युद्ध किया, वह घायल होकर गिरा, तीर लगने से उसकी एक अांख फट गई और उसके बहुत से राजपत मारे गये । राव रणमल ने मंडोवर ली। राव सत्ता को-अांखों - से दिखता नहीं था इसलिए राव रणमल ने उसको गढ़ में रहने दिया और जब वह उससे . मिलने गया, अपने पुत्रों को उमके पांवों लगाया । जब जोधा जिरह वक्तर पहने शस्त्र सजे उसके चरण छूने को गया । सत्ता ने पूछा कि "रणमल यह कौन है ?" कहा "आपका दास जोधा है ।" सत्ता बोला कि टीका इसे देना, यह धरती रक्खेगा। रणमल ने भी उसी को अपना टीकायत बनाया और मंडोवर में उसे रक्खा और आप नागौर चला गया। . एक दिन राव रणमल सभा में बैठा अपने सरदारों से यह कह रहा था कि बहुत .. दिन से चित्तौड़ की तरफ से कोई खबर नहीं आई है । उसका क्या कारण ? थोड़े ही दिन ... पीछे एक आदमी चित्तौड़ से पत्र लेकर आया और कहा कि मोकल मारा गया। राव .
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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