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________________ __ वीरवाण छाडा तीडा छात; वेपष सुध उबांबरा। वरदाई दिन दिन वधै, गोगादेवड गात ॥ जाहर पारथ जोम, बाळ धमळ छिलसै वर। भड़ गोगो थोगै भुजां, वाहत डिगतो व्योम ॥ ८३ अस भड़ झूळ असंष, सलषाहर मेळे सकज। वीरमदे रै वैररी, धरी गोगादे घंष ॥ अन जळ पान अहोड़, लीधो अंग लागे नहीं। वाप वैर किम वीसरै, गोगादे राठोड़ ॥ परणंत परजाव, इळ सिर षाटण अमर पद । दरसण गोगा नै दियो, अगठ जळधर पाव ।। ८४ ८५ पूरी दाषे प्रीत, दणव रचावरणनै दलो। रीझ समापी रळतळी, सिध मोटे सुप्रवोत ।। अंग बळ धरे अरोड़, साच वाच मांगे सकज । 'अंबर छिबंता आवियो, गोगादे राठोड़ ।। गोगादे गज गाह, नर नाहर चित नेमियो । भड़ उण समै भतीजरो, मांडे दले विवाह ।। जदम चोक जेवांण, समपण विस पाटण सुजस । जोयां अोपम . जानरा, साजे दल सैमांन ।। . सोह जांनी सिरदार, इद ज्युदो सजिया अलल । - . पड़ी गरज इक पुरणरी, तोसाषांने त्यार || विध चित दाषवमेष, प्राय सेवग कीनी अरज । दीठो मैटयरै दला, एक धमळ गघ एक ॥ ६१
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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