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________________ वीरवारण छाडाहर साझरण हिंदुय छात, घणा दल नीठ दरसिय घात । संभाइये पांणव नागाय सार, हुवा हुव दोलाय आठ हजार ॥ वागा जम रूपी षत्री बबाह, दलो भड़ वीरम हूंत दुवाह । जारेय सैंतीस सत्रां जम जाल , पाड़े रिण वीरमदेव पुचाल । जीते जुध जाहर पारथ जेम, उभो देयपाल अग्राय एम । प्रफुलत देष षड़ो देयपाल , लोहां छक वीरम बोल लंकाल । षड़ो कोही मूझ तणो रिण षेत, साजे ोय अांसुर पुत्र समेत । धरणी राय सांभल वैण सधीर, पाली कोय बोलेय तांम अधीर ।। भषू देयपाल देऊ पल भष, धणी कुण आपैय मूज धनंकं । सोलषिय माधोय अोपम साष, पना दिस नांष दीसंन्यो पैयदाक । सांमा पगं धाणष रोप सधीर, तण दंत हूंत हिलोलय तोर । घात देयपाल तणै तन घात, पाहैड़ीय की, प्रथी अषियातं ।। पनीयैय कीध पराक्रभ पात, हुवो निरलंग ऊभे कर हाथ । उजाले य ल ग धणी रोय आप, आहेड़िय पुगोय थान उद्याप ॥ मारे रिण ताल देपाल अमीर, वरे रंभ सुग्ग पोहतोय वीर ॥ ७७ दही साजे पला सधीर, पाटो घर वीरम पड़े। रहे उजागर चूडरज, निज वंस चाढण नीर ॥ ७८ ७६ सूग पितु गेयो सकाज, वरस वीस काढे विषों। लोहा छैल. चूडे लियो, रिधु मंडोवर राज ॥ धजवड़ हता सधीर, देवराज जैसींगदे । - सेत्रावै राजेस सधर, विजै सहत नर वीर ॥ ८०
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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