SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीरवाण. श्रीमुष दल सतोल, कहिया जद हूंता कथैन । आप धमळ थारो अमां, मुष मांग्यो ल मोल ॥ वचन सुणे तिण वार, ते धोरी मांगण तणो । झाटक कांधो जाटड़, नर कीधो नाकार ॥ ६२ ६४ ६५ . . ६६ आप रहण आरांण, केवियां रा चीत्या करण । . दुझल धमळ लीधो दल, जोरीवारै जवाण ॥ त्रहके त्र त्रमाळ, धोरा सिंधुरा धुवै । जांन दलो चढियो जरां, पौह छावण पूचाळ ॥ वहतां पंथ विचाळ, सज तीतर दीधा सवद। जड़ काढण षिण जोइयां, गोगादे अरगाल ॥ तीतर तणा तिवार, दाणव सूण वायक दल । सीष करे सोह जानस, वळियो जूह विडार ॥ दलो समज दइवांरण, घण जांणग आयो घरे । चूडा दिस भट चालियो, आंटै धमळ उडांण ॥ मरद वेपारां माय, असी कोस काटे इला । आयो जाट उवांबरो, चूडै पास चलाय ॥ दलो सकज दइवांण, पिता वैर मारै पहुब । वेर म करमो कार वौ, कस चूडा केकाण ॥ सुत वीरम. समराथ, उत्तर चूडे पापियो । दीठा वायक दाखिया, हेरू पटके हात ॥ ९७ ६८ ... १०० १०१ : रे चूडा सुण राव, कर सांजत चढ काछियां । जीवसी ज्यां जुड़सी नहीं, पोह इसड़ो परजांव ॥ १०२
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy