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________________ भारतीय संस्कृति के संरक्षक डा० मोतीलाल दास, एम० ए०, बी० एल०, पी-एच०डी० संस्थापकमंत्री, भारत संस्कृति परिषद्, कलकत्ता भारतीय संस्कृति एक शाश्वत जीवन शक्ति है । अत्यन्त प्राचीन काल से आधुनिक युग तक महान आत्माओं के जीवन और उनकी शिक्षाओं से प्रेरणा की लहरें प्रवाहित हुई हैं। इन संतों ने अपनी गतिशील आध्यात्मिकता, गम्भीर अनुभवों और अपने मेवा और त्यागमय जीवन के द्वारा हमारी सम्यता और संस्कृति के सारभूत तत्त्व को जीवित रखा है। प्राचार्यश्री तुलसी एक ऐसे ही संत हैं । यह मेरा बड़ा मौभाग्य है कि मैं ऐमे विशिष्ट महापुरुष के निकट सम्पर्क में आ सका। मैं अणुव्रत समिति कलकत्ता के पदाधिकारियों का प्राभारी हूँ कि उन्होंने मुझे इस महान् नेता से मिलने का अवसर दिया। प्राचार्यश्री तुलसी अवस्था में मुझसे छोटे हैं। उनका जन्म अक्तूबर, १९१४ में हुआ और मैंने उन्नीसवीं शताब्दी की अस्तंगत किरणों को देखा है। उन्होंने ग्यारह वर्ष की सुकुमार वय में जनधर्म के तेरापंथ सम्प्रदाय के कटिन माधुन्व की दीक्षा ली। अपने दुर्लभ गुणों और असाधारण प्रतिभा के बल पर बाईस वर्ष की अवस्था में ही वे तेरापंथ सम्प्रदाय के नवे आचार्य बन गए । तब मे प्राचार्य पद पर उनको पच्चीम वर्ष हो गए हैं और वे अपने सम्प्रदाय को नैतिक श्रेष्ठना और प्राध्यात्मिक उत्थान के नये-नये मार्गों पर अग्रसर कर रहे हैं। मंगलमयी प्राकृति दुनिया अाज घृणोन्माद की शिकार हो रही है । लोभ और लिप्मा, भ्रम और क्रोध का दुर्निवार बोल-बाला है। भ्रष्टाचार और पतन के युग में महान् प्राचार्य का शान्त चेहरा देख कर कितनी प्रसन्नता होती है। उनके शान्त चेहरे की ओर एक दृष्टि निक्षेप से ही दर्शक को शान्ति और ग्राह्लाद प्राप्त होता है। संयम-पालन के कारण वह कठोर अथवा शुष्क नहीं हुए हैं। उनकी प्राकृति मंगलमयी है जो प्रथम दर्शन पर ही अपना प्रभाव डालती है। उनका चौड़ा ललाट और ज्योतिर्मय नेत्र प्राप को प्राशा और शान्ति का आश्वासन देते है और उनका सन्तुलित व्यवहार प्रापको अपने पालोक मे मुग्ध कर देता है । उनमें और भगवान बुद्ध में समानता प्रतीत होती है । गौतम बुद्ध महानतम हिन्दू थे, जिन्होंने अमीम मानवताप्रेम से प्रेरित होकर अपने अनुयायियों को बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय धर्म का उपदेश देने के लिए भेजा। उन महान् धर्म-संस्थापक की तरह ही प्राचार्यश्री तुलसी ने पद-यात्रामों का आयोजन किया है। इस नवीन प्रयोग में कुछ असाधारण सुन्दरता है । तेरापंथ के माधु अपनी पद-यात्रामों में जहाँ कहीं भी जाते हैं, नई भावना और नया वातावरण उत्पन्न कर देते है। धर्म का ठोस प्राधार अपनी पद-यात्रा के मध्य प्राचार्यश्री तुलसी बंगाल आए और कुछ दिन कलकत्ता में ठहरे। उस समय मैंने उनसे साक्षात्कार किया और बातचीत की। उन्होंने मुझसे अणुव्रतों की प्रतिज्ञा लेने को कहा। मुझे लज्जापूर्वक कहना पड़ता है कि मैंने अपने भीतर प्रतिज्ञाएं लेने जितनी शक्ति अनुभव नहीं की और झिझक पूर्वक वैसा करने से इन्कार कर दिया। किन्तु वे इससे तनिक भी नाराज नहीं हुए। तटस्थ भाव मे, जो उनकी विशेषता है और क्षमागील स्वभाव मे,
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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