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________________ अध्याय ] प्राचार्यश्री तुलसी के प्रबन्ध काम्प [ २५५ विहग, पन्नग, दय-चतुष्पद, सर्वतः निस्ताप थे, हुई परिणति गति स्थिति में, शम्ब भी निःशब्द थे। सीता-परित्याग का यह सारा वर्णन बहुत ही प्रवाह पूर्ण शैली में लिखा गया है। सहृदय पाठक का इस प्रसंग में अनेक प्रकार की कोमल अनुभूतियों से प्राप्लावित हो जाना स्वभाविक है । लक्ष्मण की दशा का यथार्थ अंकन करने में कवि की वाणी इतनी मंवेद्य हो गई है कि उसके साथ तादात्म्य करने में कोई बाधा नहीं पाती। राम के कठोर प्रादेश का पालन करने की विवशता और महासती के प्रति अगाध श्रद्धा से भरा कृत्तान्तमुख सेनापति का मन द्विवधा में डब जाता है। उसे मीता को छोड़ने वन में जाना ही होगा-कैसी परवशता है। स्खलित चरण, कम्पित बदन, प्राकृति प्रषिक उदास । पहुंचा सेनानी सपदि महासती के पास । परित्यक्त होकर सीता वन में चली पाई, किन्तु उसका मन घोर अनुताप से भर गया। सनी-माध्वी निर्दोष 'नारी को इतना भीषण कष्ट उठाना पड़ा, यह नारी जीवन का अभिशाप नहीं तो क्या है ? नारी के अभिगप्त जीवन का वर्णन कवि के शब्दों में सुनने योग्य है : अपमानों से भरा हुमा है नारी-जीवन, परमानों से भरा हुमा है नारी-जीवन, अभियानों से डरा हुआ है नारी-जीवन, बलिवानों से घिरा हुमा है नारी-जीवन । पुरुष-हृदय पाषाण भले ही हो सकता है, नारो-हृदय न कोमलता को खो सकता है। पिघल-पिघल उसके प्रन्तरको धो सकता है, रो सकता है, किन्तु नहीं वह सो सकता है। अनुताप को भट्टी में जलकर सीता ने अपनी विचारधारा को कंचन बनाया। उसे साहस का सम्बल मिला अपने ही अन्तर के भीतर । आसन्न प्रसवा होकर वह वन में पाई थी। उसने दो पुत्रों को जन्म देकर अनुभव किया कि वह पति परित्यक्ता होकर भी पुत्रवती है। उसके पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम की सन्तान हैं। सीता के उदर में पल कर उन्होंने सत्य, धर्म और व्रत-पालन की दीक्षा ली है, क्या वे मातृ-अपमान का बोध होने पर शान्त रह सकते थे । सीता के पुत्रों की वाणी में प्रतिशोध की अग्नि भभक उठी और वीरोचित दर्प से वे हंकार उठे: जिस मां का हमने दूध पिया उसका अपमान न देखेंगे, बम-धमती इन तलवारों से हम जाकर के बदला लेंगे, रे! दूर कौन-सा कौशल है बोररव स्वयं का तुम तोलो, यदि थोड़ी-सी भी क्षमता है करके दिखलामो, कम बोली। सीता के पुत्र युद्ध के लिए सन्न होकर मैदान में उतरते हैं और लक्ष्मण के साथ पाई हई सेना से पूरी तरह मोर्चा लेने में जुट जाते हैं । इनकी वीरता से एक बार-लक्ष्मण-व राम भी अभिभूत हुए बिना नहीं रहते। राम और लक्ष्मण दोनों की समवेत शक्ति भी इन्हें परास्त करने में सफल नहीं होती। राम व लक्ष्मण ने अनेक शस्त्रास्त्रों का प्रयोग किया, किन्तु सभी बेकार गये।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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