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________________ अध्याय ] इस युग के प्रथम व्यक्ति [ २११ दुरुपयोग करता है और जब वह देखता है कि उसकी प्रान्तरिक लिप्सा-पूर्ति की क्षमता अनुयायियों की तपस्या ने उसमें उत्पन्न कर दी है तो वह उन्हें ठीक उसी तरह पीछे छोड़ जाता है, जिस तरह किसी भवन की सीढ़ियों को एक-एक कर छोड़ता हुमा कोई व्यक्ति ऊपर चढ़ता है। प्राचार्यश्री की ओर जब हमारी दृष्टि जाती है तो हम उन्हें संसार-त्यागी के रूप में पाते हैं। जब वे अपना स्थायी निवास स्थान नहीं बनाते, किसी पद को स्वीकार नहीं करते, धन को छूते भी नहीं, अपने पास कुछ भौतिक ऐश्वर्य रखते ही नहीं; तब उनकी कोई ऐसी भौतिक कामना हो ही कैसे सकती है जिसे वे आन्दोलन के बल पर पूरी करना चाहते हों। हां, उनकी कामना है और वह यही है कि मानव प्राध्यात्मिक बने । उसका चरित्र शुद्ध हो और उमका कल्याण हो। यह अवस्था ऐसी है जो हमें आश्वस्त करती है, विश्वास दिलाती है और भयमुक्त करती है। __इस युग में राष्ट्र के प्रत्येक अंग में अनैतिकता घर कर गई है जिसे सभी देखते हैं, अनुभव करते हैं; किन्तु प्राचार्यश्री तुलसी इस युग के प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने उन बुराइयों को दूर करने का निश्चय किया है और वह अणुव्रतआन्दोलन के रूप में क्रियान्वित हुआ । यह अान्दोलन अपने ढंग का एकाकी है। क्योंकि इसमें न तो उपासना-पद्धति पर जोर दिया जाता है और न किसी प्रकार का कोई वचन ही लिया जाता है । वह तो केवल प्रात्म-शुद्धि की मांग करता है। नारियों से, विद्यार्थियों मे, सरकारी कर्मचारियो मे, व्यापारियों से और सभी अन्य नागरिकों से प्रान्दोलन की माँग उनको परिस्थितियों के अनुसार है। प्राचार्यश्री तुलसी चाहते हैं कि राष्ट्र का प्रत्येक वर्ग आदर्श हो, उच्च हो, कर्तव्यपालक हो । यदि यह हो गया तो देश का कल्याण होगा, इगमें सन्देह नहीं। नहीं भक्त भी, किन्तु विभक्त भी मुनिश्री मानमलजी (बीदासर) जन-जागृति के अमर प्रणेता है तेरा शतश: अभिनन्दन, नही भक्त भी, किन्तु विभक्त भी करते हैं तेरा अभिनन्दन । झम रहे थे जग के चेतन जिन भौतिक श्वासों को पाने, उलझे थे सूने भावों में जग की चापों को अपनाने, पा तुमने तब घोर अमा में जीवन को ज्योति दे डाली, मानव डग भरता है अब तो पाने क्षितिज पार की लाली, बीहड़ पथ सुषमा से पूरित, हुआ प्राज सब टूटे बन्धन, जन-जागृति के अमर प्रणेता है तेरा शतशः अभिनन्दन । अणु से हो प्रारम्भ पूर्ण तक है सबको ही बढ़ते जाना, इसीलिए तो अणुव्रतों का सुना रहा तू गीत मुहाना, पुलकित हो नैतिकता युग-युग मानवता की हो अगवानी, जीवन मधुरिम घड़ियाँ ले, गढ़ जाये अपनी मधुर कहानी, तुम तो स्थितप्रज्ञ तुम्हारे लिए एक है पावक-चन्दन, जन-जागृति के अमर प्रणेता है तेरा शतशः अभिनन्दन ।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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