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________________ २१० ] प्राचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन सम्म [ प्रथम यहा अणुव्रती के काम्य अणुव्रत-आन्दोलन चरित्र-निर्माण का पान्दोलन है, राष्ट्र-निर्माण का आन्दोलन है, मानव-मात्र के कल्याणसाधन का आन्दोलन है। इस आन्दोलन को देश, काल और पात्र की सीमाओं से परिवेष्टित नहीं किया जा सकता। यह मनुष्यमात्र के कल्याण का मार्ग-निर्माण करने वाला प्रयास है और कहा तो यह भी जा सकता है कि प्राणी-मात्र के सुख और शान्ति प्रणवती के काम्य है। प्राचार्य तुलसी जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के निर्देशक, नियामक व नवम प्राचार्य हैं और उनका स्थान अपने अनुयायियों में इतना उच्च है कि शायद ही किसी अन्य सम्प्रदाय के प्राचार्य का प्रामन उसकी समता कर सके, किन्तु फिर भी अण्वत-आन्दोलन पर साम्प्रदायिकता की किसी प्रकार की छाप नहीं। अणुबत-प्रान्दोलन का क्षेत्र सभी मनुष्यों का स्वागत करता है। वे चाहे किसी भी देश, समाज, जाति, वर्ण अथवा सम्प्रदाय के हों। अणवत-आन्दोलन साम्प्रदायिक मान्यताओं पर न तो आघात करता है और न उन्हें बढ़ावा देता है। किन्तु मानव-धर्म को प्रमुखता देने का प्रयाम करता है और उम को मान्यता दिलवाने का प्रयत्न करना ही प्रणवन-ग्रान्दोलन का एकमात्र उद्देश्य है। आचार्यश्री तुलसी तेरापंथ के नवम आचार्य हैं; अतः जो तेरापंथ की मान्यताओं से परिचित नहीं और जिमको प्राचार्यश्री के दर्शन नहीं मिले, वह यही समभोगा कि इसने मामान्य व्यक्ति का वैभव स्पृह गीय होगा, उनकी सुविधाएं अमीम होगी। किन्तु बात इसके सर्वथा विपरीत है । उनके परिवार नही, घर नहीं, सम्पत्ति नहीं, मठ नहीं, कोई स्थायी निवास नहीं, किमी सवारी पर चलते नहीं, किसी प्रकार की कोई सामग्री पास रखते नहीं ; श्वेन परिधान, कुछ अावश्यक पुस्तकं और काष्ठपात्र को छोडकर । भिक्षान्न पर जीवन-यापन और जीवन का लक्ष्य मनुष्यमात्र का कल्याण । आतिथ्यमत्कार स्वीकार करना उनकी परम्परा के विपरीत है। प्राचार्यत्व के अतिरिक्त किमी पद को स्वीकार करना उनकी धार्मिक मान्यताओं के अनुकूल नहीं । वे इतने निःस्पृह और इतने निष्काम हैं। ___ यदि ऐमे शुद्ध चरित्र का व्यक्ति हममे शुद्ध चरित्र की आकांक्षा करता है, तो वह स्वाभाविक है और उसका प्रभाव पडना हमारे ऊपर अनिवार्य भी है। अणुवती से अणुव्रत-अान्दोलन के प्रवर्तक न तो सम्मान चाहते हैं और न बदले में किसी कामना की पूर्ति की आकांक्षा ही रखते हैं। उनकी तो हमसे केवल इतनी ही मांग है कि हम अपने चरित्र को निष्कलंक रखें और वास्तविक मनुष्य बनने का प्रयास करें। प्राचार्यश्री श्रमण-संस्कृति के वर्तमान नपोधन प्रतिनिधि है । उनकी प्रवृत्ति जन्मना वैगम्यमूलक है। प्राचार्यश्री का व्यक्तित्व इतना महान् सिद्ध हुया कि वह तेगपंथ के घेरे में न समा मका और आज अणवत-अान्दोलन-प्रवर्तक के रूप में हम उन्हे युग-स्रष्टा मनीषियों में प्रमुख स्थान अधिकृत किये पा रहे हैं। प्राध्यात्मिक वातावरण की सृष्टि से ही गृहत्यागी महात्माओं के द्वारा होनी पाई है। भगवान बुद्ध, महावीर स्वामी, शंकराचार्य, ईसा इत्यादि जितने भी प्राध्यात्मिकता का सन्देश देने वाले विश्व में हुए है, मब इमी श्रेणी के थे । उनकी निःस्पृहता, उनकी अकिचनता ही में बह शक्ति थी कि मनुष्य को उनकी बात सुनने के लिए बाध्य होना पड़ा है। प्राचार्य तुलसी उसी परम्परा के हैं। इसीलिए अणवत-अान्दोलन की सफलता अमंदिग्ध है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि मनुष्य को प्राज इमी सन्देश की मबसे अधिक आवश्यकता है। स्वर्ण नभी शुद्ध होता है, जब वह अग्नि में सपा लिया जाता है। जितना जल जाता है, वह विकार होता है और जो शेष रहता है, वही सोना है। गुणगान ही यथेष्ट नहीं होता, गणों को कसौटी पर कसना भी जरूरी होता है । प्रणवतअान्दोलन पर हम जितना विश्वास करते है, कहीं ऐसा तो नहीं कि वह प्रावश्यकता से अधिक हो। ___ मवमे पहले तो हमें यह देख लेना आवश्यक है कि आन्दोलन-प्रवर्तक अपने ग्रान्दोलन के द्वारा किम उद्देश्य-प्राप्ति के इच्छक हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने वैयक्तिक, पारिवारिक अथवा अन्य किसी संकुचित स्वार्थ सिद्धि के लिए अान्दोलन केवल सीढ़ी का काम दे रहा हो । यदि ऐमी परिस्थिति आन्दोलन को जन्म देने वाली होती है तो कर्णधार कर्णधार न सिद्ध होकर अपने अनुयायियों को बीच धार में एवाने वाला होता है। वह अपने अनुयायियों की निष्ठा का
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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