SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस युग के प्रथम व्यक्ति श्रो गिल्लूमल बजाज अध्यक्ष, अणुव्रत समिति, कानपुर यह कोई शाश्वत तथ्य नहीं कि भौतिकता अनैतिकता का प्राश्रय लेकर ही चले, किन्तु जब मानव दृष्टि-पथ में निःश्रेयस् हो ही नहीं और वह उसकी आवश्यकता भी स्वीकार न करना चाहे तो उस उपेक्षित माध्यात्मिकता में भौतिकता को अनैतिकता की भूमि पर खड़े होने से रोक देने की शक्ति ही कहां से आयेगी। यह एक नियम-सा है कि भौतिक उत्थान माध्यात्मिकता को उपेक्षा की दृष्टि से देखता है और इसीलिए यह स्वीकार किया जाता है कि भौतिकता प्रनतिकता की भूमि पर खड़ी होती है। ___ जब हम अपने राष्ट्र पर दृष्टि डालते हैं और यह देखते हैं कि हमें भयंकर अनैतिकता के वातावरण में से होकर चलना पड़ रहा है, तव हमें आश्चर्य होता है और हम यह सोचने के लिए बाध्य हो जाते है कि यह सम्भव कैसे हुआ; क्योंकि हमें स्वतन्त्र करने का श्रेय सत्य, अहिंसा और प्रेम पर आधारित हमारे नैतिक आन्दोलन को है। स्वतन्त्र हम हग नैतिकता के बल पर और स्वतन्त्रता-जन्य सुखोपभोग के लिए हम आश्रय ले रहे हैं-अनैतिकता का; यह आश्चर्य ही तो है ! ऐसा विपरीत परिणाम क्यों ? और इस विपरीतावस्था में होने वाले राष्ट्रोत्थान का प्रयास क्या हमारी वास्तविक सुख-समृद्धि की सृष्टि कर सकेगा; यह भी एक प्रश्न है और जिसे हम राष्ट्र-निर्माण की संज्ञा दे रहे है क्या मचमुच में इस प्रकार का राष्ट्र-निर्माण वस्तुतः हमारे लिए लाभप्रद है। इस पर भी हमें सोचना होगा। राष्ट्र निर्माण और नैतिकता राष्ट्र किसी विशेष स्थल के अन्योन्याश्रित निवासियों के उस समह को कहते हैं जो अपने सदस्यों की सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक विचारधाराओं को एक साथ, एक ही दिगा में प्रवाहित करता है और जो सम्बन्धित सदस्यों के वैयक्तिक स्वार्थों को सामूहिक स्वार्थ का पूरक बना देता है। इसीलिए राष्ट्र-निर्माण का वास्तविक अर्थ है, राष्ट्र के नागरिकों के चरित्र को उस साँचे में ढालना, जो सम्बन्धित समुदाय के स्वार्थ की पूर्ति करने वाला हो। यदि ऐसा प्रयास नहीं हो रहा तो नामपट्ट चाहे जो लगा दिया जाये, किन्तु वास्तविकता तो यह है कि उस प्रयास को राष्ट्र-निर्माण का नाम देना, राष्ट्र को धोका देना है। निःसन्देह बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना हो रही है, बाँध और नहरे अस्तित्व में आ रहे हैं, बिजली का प्रसार हो रहा है; किन्तु क्या इसीसे राष्ट्र-निर्माण हो जायेगा? क्या इसीसे हमारे देश मे घी और दूध की नदियाँ बहने लगेंगी? सत्य तो यह है कि राष्ट्र-निर्माण की दिशा में सबसे पहले नागरिकों के चरित्र-निर्माण की आवश्यकता है। प्राप्य एवं संग्रह में एक अन्तर है, यह नागरिकों को मालूम होना चाहिए । अधिकार का ही ज्ञान पर्याप्त नहीं है, नागरिक को कर्तव्य का ज्ञान भी होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो राष्ट्र की चाहे जो भी इमारत खड़ी की जाये, वह स्थायी नही होती। जिस राष्ट्र का नागरिक अपने कर्तव्य और अधिकार, अपने प्राप्य और देय के अन्तर को ईमानदारी से स्वीकार नहीं करता, वह राष्ट्र जियेगा कैसे? राष्ट्रीयता का प्राण है, राष्ट्र के प्रति निष्ठा । राष्ट्र-निष्ठा का अर्थ है, उसके निवासियों के कल्याण की भावना।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy