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________________ मध्याय ] संघीय प्राचारणा की दिशा में [ २०७ मंत्री मुनि तेरापंथ संघ के सर्व सम्मान्य व्यक्ति थे। उन्होंने पांच प्राचार्यों का जीवनकाल देखा, वे सभी के कृपापात्र रहे । प्राचार्यश्री तुलसी ने इनको मंत्री की उपाधि से विभूषित किया । यह तेरापंथ संघ में पहला अवसर था कि किसी मुनि को मंत्री की उपाधि मिली हो। वे अपने जीवन में सदा ही प्राचार्यों के साथ रहे। पहली बार शारीरिक अस्वस्थता के कारण उनको बीदासर में रहना पड़ा। तब लाडनूं में प्राचार्यश्री ने उनको पहला पत्र संस्कृत में लिखकर दिया था, उसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है : मंत्री मुने ! पुनः-पुनः वंदना और बार-बार सुख पृच्छा। इन समाचारों को सुनकर मुझे बड़ा खेद हुआ कि आपका शरीर पहले की तरह अस्वस्थ ही है । खेद ! जिस प्रकार आपका शरीर जरा जीर्ण हो गया, क्या इम दुनिया की औषधियाँ भी जीर्ण हो गई? क्या सभी प्रकार की चिकित्साणं संदिग्ध हो गई ? जिससे आपका शरीर अभी भी व्याधिग्रस्त हो रहा है । मैं मानता हूँ कि आपका शरीर जितना रोग से पीड़ित नहीं है उतना मझसे दूर रहने के कारण है। ऐसा मैं विश्वास करता है । यह मेरी कल्पना सही है । किन्तु यह शरीर तो समय आने पर मुझसे मिलने पर स्वयमेव स्वस्थ हो जायेगा, ऐसा लगता है। आप इस अन्तराय काल में शान्त चित्त होकर रहें। क्योंकि यह मैं निश्चित मानता हूँ कि “आप मेरे में कोई दूर नहीं हैं और न मैं आपसे दूर हूँ।" इन मेरे वाक्यों को बार-बार स्मरण रखते हुए अपने अन्त करण को शान्त रखें। अपना मिलन शीघ्र ही होने की सम्भावना है। यहाँ समम्त संघ पूर्णतया कुशल है वैसे ही वहाँ होगा। मं० २००५ पौष कृष्णा ५, लाडनूं । तुलसी गणपति नवमाचार्य तुम मानव ! मनिश्री श्रीचन्दजी 'कमल' तुम मानव हो देवत्व तुम्हारे चरणों में लुटता है लोग तुम्हारे में देवत्व की कल्पना कर रहे हैं पर तुम मानव हो और मानव ही रहना चाहते हो क्योंकि देवत्व विलासिता का रूपक है और मानव पुरुषार्थ का । पुरुषार्थ में तुम्हारा विश्वास है, इमीलिए तुम मानव रहना चाहते हो।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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