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________________ मानवता का नया मसीहा श्री एन० एम० झुनझुनवाला प्राज मानवता संकट में है। भौतिक उत्थान की इस उपग्रह-बेला में भी व्यक्ति-व्यक्ति त्रस्त है। विज्ञान के प्रखर प्रकाश में भी संसार विपथ हो गया है। शीत-युद्ध के रंगमंच पर शस्त्रीकरण का उच्छृखल अभिनय काफी विकराल हो उठा है। समर-देवता की भयानक जीभ विश्व को निगल जाने के लिए लपलपा रही है। तीन अरब कण्ठों की पात वाणी पाज पल-पल चकित होती हुई-सी निकल रही है। मानवता संकटापन्न है । शान्ति को खतरा है। ___ यह वैज्ञानिक युग का उपग्रह-काल है । बौद्धिकता की पराकाष्ठा है, मनुष्य के चरम विकास की भी पराकाष्ठा है। मानव-निर्मित उपग्रहों ने ईश्वर-निर्मित ग्रहों को विजित करने की चेष्टा की है। अन्तरिक्ष का विराट रहस्य पाज यन्त्रों द्वारा मनुष्य की प्रोखों में उतारा जा रहा है। शून्यता का महावास मनुष्य के ज्ञान मे चिह्नित हो रहा है। विज्ञान की इस महाबेला में भी कहीं से झनझनाहट सुनाई पड़ रही है.--मानवता मर रही है, शान्ति रो रही है। मानवता और शान्ति को नीलामी मनुष्य की सर्वतोमुग्वी भौतिक जागृति में सदबुद्धि की रोशनी बुझती जा रही है। ज्ञान का मातंण्ड भी अज्ञान मे घिरा जा रहा है। प्रलय मचाने वाली शक्ति मे लज्जित होकर भी मनुष्य को चैन नहीं। अपने अस्त्र-शस्त्र से अपना ही गला घोंटने को उद्धत विज्ञान-पुरुष मूढ़ता का महान नाटक खेल रहा है। मनुष्य की दोनों मुट्टियों में मानवता और शान्ति की मासूम बुलबुल छटपटा रही हैं। हर ओर से आवाज पा रही है-मानवता को बवाओ! शान्ति को संभालो ! और मानवता तथा शान्ति की रक्षा के लिए चेहरे पर नकाब डालकर अनेक खलनायक विश्व-मंच पर अभिनय कर गये है । शीत-युद्ध के दुपट्टे में अणु और उद्जन बम छिपाये प्राची और प्रतीची के दो अभिनेना मंत्री के लिए हाथ मिलाते है । शान्ति और मानवता की सहमी आँखों में थोड़ी खुशी झांकती है ; किन्तु अपने-अपने घर आकर फिर मानवता और शान्ति की नीलामी शरू हो जाती है और दुबले-पतले मानवों का महासागर चिल्ला उठता है-मानवता को मत लूटो ! शान्ति को मत मारो! वाण्डग से लेकर बेलग्रेड तक बेचारे टूटे हा लोग दौड़-धप करते है। प्रस्ताव पर प्रस्ताव रखे जाते है। किन्तु अणु-परीक्षण का एक ही विस्फोट तटस्थता के अनुयायियों की धज्जी-धज्जी उड़ा डालता है।। प्राची और प्रतीची के ये दो सूत्रधार तीन अरब पुतलों के जीवन की सट्टेबाजी खुले आम खेलते हैं । कही इस द्यूत-क्रीड़ा का नकाब फाड़न डाला जाये, इसलिए ये चिल्ला-चिल्लाकर बोलते हैं--शान्ति सम्पूर्ण निरस्त्रीकरण। किन्तु, कहाँ है वह प्रयास, जो सम्मान्य शान्ति का मार्ग प्रशस्त करे, जो सम्पूर्ण निरस्त्रीकरण की भावना को जगा सके ! मानवता की इस दर्दसरी का मूल कहाँ है, कौन जाने ? नये चिकित्सकका अन्वेषण राजनीति के खिलाड़ी, चिकित्सा के नाम पर, कुटनीतिक मूचिका-रम-भरण अवश्य कर सकते है, किन्तु सही रोग-निदान और तदनुकूल चिकित्सा तो कोई अनुभवी चिकित्सक ही कर सकता है। कृष्ण, बुद्ध, ईसा, गांधी और मास की चिकित्सा बीमार मानवता का रोग पहचान सकती है, किन्तु अाज उसी पद्धति का नवीन रूप लेकर किसी नये मसीहा की आवश्यकता है। महामारी के रूप में रोग की परिणति होने से पहले चिकित्सक का अन्वेषण आवश्यक लगता है,
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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